Thursday, September 22, 2016

(भाग 8) प्रवासी पक्षियों की कुछ और कहानियां....


हिंदी की एक विज्ञान पत्रिका के लिए मैं पक्षियों पर एक धारावाहिक blog करता हूँ. उसी की यह ताज़ा आठवीं कड़ी !

जितेन्द्र भाटिया
प्रवासी पक्षियों की कुछ और कहानियाँ.... 

यह तो हम तुम्हें बता ही चुके हैं कि भोजन और आबोहवा के लिए बहुत सारे पक्षी हर साल लम्बी यात्राएं करते हैं. अक्सर इन यात्राओं में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है और कई बार तो उनकी जान पर ही बन आती है. तो इस बार तुम्हें सुनाते हैं पक्षियों की यात्राओं से जुड़ी कुछ दिल छू लेने वाली कहानियां! 

गुजरात में कच्छ का एक प्रमुख शहर है भुज! इस शहर के बीचोंबीच एक 450 पुरानी झील है हरमिरसर. सर्दियाँ आते ही यह झील दूर दूर से आये प्रवासी पक्षियों से भर जाती है. कई तरह की बत्तखें, कुरारियां, पनकौवे, छोटे गुदेरे, बगुले और इन सभी के साथ बड़े-बड़े सफ़ेद हवासिल great white pelicans (pelacanus oncrotalus), शान से झील के एक छोर से दूसरे छोरे  तक फुर्सत में धीरे-धीरे तैरते हुए.

हरमिरसर झील में पक्षियों का झुण्ड 

सर्दियों के ख़त्म होते ही ये सारे पक्षी एक-एक कर वापस योरोप, मंगोलिया या साइबेरिया लौट जाएंगे. हवासील हमेशा एक झुण्ड में तैरते हैं. अपनी तीन दिनों की यात्रा में हम जितनी बार उस झील पर गए, हमने देखा कि झील के बीचोंबीच तैर रहे हवासिलों के बड़े से झुण्ड से अलग तीन हवासिल हमेशा किनारे के पास तैरते मिलते हैं. ध्यान से देखने पर पता चला कि उनमें से एक हवासिल चोटिल है. 

चोटिल हवासिल अपने पंख सूखाता हुआ 

हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि किसी अजनबी के पास आते ही वे झट किनारे से दूर चले जाते हैं लेकिन किनारे पर कपड़े धो रही औरतों से ये ज़रा भी नहीं डरते. हमारे पूछे जाने पर एक औरत ने बताया कि तीन साल पहले एक कुत्ते ने पानी में घुसकर इस हवासिल का पंख तोड़ डाला था. जब मार्च में इनके वापस लौटने का समय आया तो घायल हवासिल ने पंख  फड़फड़ाकर पाया कि वह उड़ नहीं सकता. झुण्ड के सारे हवासिल एक एक कर उड़ गए. लेकिन ये दो हवासिल संकट में अपने चोटिल दोस्त का साथ छोड़ने की जगह उसके साथ यहीं रुक गए. तबसे ये तीनों हवासिल बारहों महीने यहीं साथ साथ रहते हैं. और अब तो ये हमें पहचानने भी लगे हैं. दोस्ती की खातिर अपनी जन्मस्थली छोड़ने वाले ये तीनों सच्चे मित्र हरमिरसर झील में  आज भी आपको साथ-साथ तैरते मिल जायेंगे. 

चोटिल हवासिल और उसके दोनों दोस्त 

 हिन्द महासागर में  टापुओं का एक खूबसूरत द्वीप समूह है सेशेल्स जो अपने सुन्दर समुद्र तटों के लिए विख्यात है. यहीं एक छोटा सा पक्षी द्वीप (Bird Island) है जहां हर साल लाखों की संख्या में पक्षी प्रजनन के लिए आते हैं और बच्चे बड़े होने के बाद यहाँ से उड़ जाते हैं.

पक्षी द्वीप seychelles

 इस द्वीप पर सांप, चूहे और खरगोश नहीं हैं, जिसके कारण पक्षी अपने अण्डों की चिंता किये बगैर जमीन पर भी घोंसले बना सकते हैं. इस द्वीप पर प्रजनन के लिए आने वाले पक्षियों  में सबसे प्रमुख--सलेटी कुकरियाँ (Sooty Terns) (Onychoprion fuscata) हर साल पांच से छः लाख की संख्या में घोंसले बनाने यहाँ आती हैं.

पक्षी द्वीप पर सलेटी कुकरियों के घोंसले 

 वैज्ञानिकों ने पाँव में छल्ले लगाकर पहचान की है कि वही पक्षी कोई चार साल बाद यहाँ लौटते हैं. बीच के चार साल ये पक्षी समुद्र पर उड़ते हुए गुजारते हैं.  

हवा में उड़ती सलेटी कुकरियाँ

मज़े की बात यह है कि सलेटी कुकरी को पानी मैं तैरना नहीं आता लेकिन फिर भी इसका अधिकाँश समय समुद्र पर उड़ते हुए बीतता है. समुद्र पर उड़ते उड़ते ही यह गोते लगाकर मछलियाँ पकड़ती है और कई बार उड़ते उड़ते ही हवा में अपनी नींद भी पूरी कर लेती है.

जिस तरह मनुष्यों में दूसरों का सामन छीनने वाले डाकू होते हैं, उसे तरह पक्षियों में भी समुद्री डाकू होते हैं! 

पेड़ों पर बैठे डाकू जहाजी पक्षी 

पक्षी द्वीप पर विशालकाय डैनों वाला जहाजी पक्षी great frigate bird (Fregata minor) कुछ इसी तरह के समुद्री लुटेरे का सा काम करता है. कुकरियाँ जब समुद्र से मुंह में घोंसले के बच्चों के लिए लौट रही होती हैं तो ये लुटेरे पक्षी उनके पीछे पड़कर उन्हें इतना थका देते हैं कि वे चोंच में पकड़ी मछली को छोड़ने पर मजबूर हो जाती हैं. और तब ये पक्षी उस छोड़ी हुई मछली को हवा में ही पकड़कर अपना भोजन बना लेते हैं!  

लम्बी यात्रा पर निकले प्रवासी पक्षियों को यूं तो रास्ते में कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. लेकिन इन यात्राओं पर पक्षियों के लिए सबसे बड़ा खतरा है मनुष्य! हर वर्ष यात्रा पर निकले लाखों पक्षियों में से बहुत सारे रास्ते में इंसान की बंदूकों के निशाने से मारे जाते हैं. यह खतरा प्रवास में कम ऊँचाई पर उड़ने वाले पक्षियों के लिए सबसे अधिक होता है.

अमूर शाहीन 

ऐसा ही एक पक्षी है बाज़ प्रजाति का अमूर श्यान या शाहीन amur falcon (Falco amurensis) जो बहुत कम ऊँचाई पर उड़ता हुआ अपनी प्रवास यात्रा में भारत से होकर गुज़रता है, और कई बार उसकी यह कम ऊँचाई की यात्रा ही उसकी मौत का कारण बन जाती है. हर साल हज़ारों अमूर के झुण्ड अपने जन्मस्थल साइबेरिया से उड़कर दक्षिणी अफ्रीका की 22000 किलोमीटर की लम्बी यात्रा तय करते हैं. इंसान को कुछ वर्ष पहले ही सॅटॅलाइट की मदद से उनके हवाई मार्ग का पता चला जिसमें वे उत्तर पूर्व भारत के ऊपर से होते हुए अफ्रीका पहुँचते हैं. 

नागालैंड में पकड़े निरीह अमूर शाहीन 

उनके लिए इस यात्रा का सबसे मारक हिस्सा था नागालैंड, जहाँ अभी कुछ समय पहले तक 120 हज़ार या इससे भी अधिक अमूर हर साल अपने मांस के लिए बेरहमी से मार दिए जाते थे. एक समय तो ऐसा लगा कि बड़े पैमाने पर इन नृशंस हत्याओं के कारण धरती से इस सुन्दर पक्षी का नामोनिशान ही मिट जाएगा. तब बहुत सारी संस्थाओं के साथ नागालैंड सरकार और चर्च ने मिलकर  अमूर शाहीन को बचाने के लिए एक बड़ा अभियान शुरू किया जो आज भी चल रहा है. 

मच्छरदानी में बंद किये अमूर, मारे जाने से पहले  

इस पक्षी को बचाने का महत्त्व बच्चों को समझाना सबसे आसन था. फिर उनके द्वारा उनके परिवार वालों को भी जागरूक किया गया. संस्थाओं ने इसके लिए आकर्षक पोस्टर के ज़रिये सन्देश भी दिया कि यह पक्षी हमारे देश का मेहमान है और इसे बचाना हम सबका फ़र्ज़ है. शिकार करने वालों को कानून से भी डराया गया.

नागालैंड के मुख्यमंत्री 'अमूर बचाओ अभियान' से जुड़े बच्चों के साथ   

 नागालैंड में सबसे अधिक लोग बैप्टिस्ट क्रिश्चियन  धर्म को मानते हैं. वहां की चर्च ने जब इस अभियान को समर्थन देते हुए सन्देश दिया कि बाइबिल में भी शाहीन जैसे जीवभक्षी पक्षियों को खाने की मनाही है तो पुराने ख्यालों वाले लोग भी मान गए.  इस सारे अभियान का अच्छा परिणाम यह निकला है कि पिछले दो तीन वर्षों में नागालैंड में अमूर शाहीन का शिकार काफी कम हो गया है. यह प्रयास यदि आगे चलकर पूरी तरह सफल हो गया तो अमूर शाहीन सचमुच नागालैंड का शुक्रगुजार होगे. 

'अमूर बचाओ अभियान' का एक पोस्टर 

(हम  Conservation India और Ramki Srinivasan के आभारी हैं जिन्होंने इस कड़ी के लिए अमूर शाहीन और उसके शिकार से जुड़े कुछ चित्र भेजे).


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Sunday, July 24, 2016

(Part 7) पंछी ऐसे आते हैं....(Some More Stories of Migration of Birds)

खीचन  में कुरजा पक्षियों का समूह 

बच्चों की एक हिंदी विज्ञान पत्रिका के लिए मैं पक्षियों पर एक श्रृंखला कर रहा हूँ. मित्रों और बहुत से बच्चों का आग्रह था कि इसे 'ब्लॉग' का रूप भी दिया जाए. इसी की पूर्ति में प्रस्तुत है पक्षियों की अनोखी दुनिया की यह सातवीं कड़ी जो शायद बच्चों के अलावा बड़ों को भी पसंद आये!

जितेन्द्र भाटिया
पंछी ऐसे आते हैं....... पंछी ऐसे जाते हैं...... 

यह तो हम तुम्हें बता ही चुके हैं कि भोजन और प्रजनन के लिए बहुत सारे पक्षी हर साल लम्बी यात्राएं करते हैं. लेकिन लम्बी दूरियों तक का प्रवास करने वाले कुछ पक्षियों के कारनामे सुनकर तुम आश्चर्य में पड़ जाओगे !


राजस्थान में जोधपुर से कुछ दूरी पर फलौदी शहर के पास एक छोटा सा गांव  है खीचन, जो तपती गर्मियों में लगभग उजाड़ हो जाता है. लेकिन बरसातों के बाद सितम्बर का अंत होते-होते यहाँ हज़ारों की संख्या में सुदूर मंगोलिया से कुरजाएं (demoiselle cranes) उड़कर आनी शुरू हो जाती हैं.


उड़कर आती कुरजाएं (demoiselle  cranes)(Grus virgo)   


फिर ये लगभग छह महीनों तक यहीं रहती हैं और गाँव वाले बहुत प्यार के साथ इन सारे पक्षियों के लिए भोजन का इंतज़ाम करते हैं. हर शाम लगभग एक टन ज्वार चुग्गाघर के मैदान में इन पक्षियों के लिए फैलाया जाता है. 


सुबह के समय चुग्गाघर में कुरजाएं 

,दुनिया भर से यहां सैलानी इन सुन्दर पक्षियों को देखने के लिए आते हैं, जिनकी संख्या सितम्बर के अंत तक दस हज़ार से भी अधिक हो जाती है.  गाँव वाले बहुत जतन से छह महीनों तक इन पक्षियों की देखभाल करते हैं. फिर मार्च के अंत तक ये पक्षी फिर से उड़कर अपने सुदूर देश मंगोलिया में लौट जाते हैं. 

खीचन में उड़कर आती कुरजाएं 

मज़े की बात यह है कि कुरजा पक्षी अपने अंडे और बच्चे  सुदूर देश मंगोलिया में ही देता है. 

तुम पूछ सकते हो कि इतने सफर में भी ये पक्षी कभी भटकते नहीं? इतनी दूर से वे नियत समय पर हर साल गाँव कैसे पहुँच जाते हैं?  और यह लंबा सफर वे एक बार में ही पूरा करते हैं या रास्ते में कहीं रुकते भी हैं? और इस यात्रा में क्या बच्चे भी उनके साथ होते हैं? रास्ते में इन्हें भोजन कैसे मिलता है? और रास्ते में क्या इन्हें खतरों का भी सामना करना पड़ता है? पक्षियों के लम्बी दूरी के प्रवास से जुड़े ये सवाल हमें ही नहीं, दुनिया भर के वैज्ञानिकों को भी अचम्भे में डालते रहे हैं. और इनमें से कुछ के जवाब तो उन्हें पक्के तौर पर आज भी मालूम नहीं हैं.

छोटे पक्षी के पैर  में छल्ला लगाता वैज्ञानिक (चित्र  सौजन्य Julio Reis)  


यूं तो पक्षियों के इस प्रवास या पव्रजन (migration) की जानकारी  मनुष्य को बहुत पहले से है.  लेकिन उड़ने के बाद पक्षी किस रास्ते से कहाँ जाते हैं, यह पता लगाना मुश्किल था. फिर कुछ  वैज्ञानिकों ने पहचान के लिए पक्षियों के पैरों में छल्ला बांधकर उनकी पहचान करने और उनकी यात्राओं के रास्तों के बारे में पता लगाने की कोशिश की. आधुनिक समय में उपग्रह या satellite के ज़रिये पक्षियों के आकाश पथों का पता लगाना बहुत आसान हो गया है. जैसे अब पता चला है कि कुरजाएं पूर्व से ही नहीं, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के रास्ते भी हमारे देश में आती हैं. बाज़ (falcon ) जाति के कई पक्षी मंगोलिया/ चीन से थाईलैंड और फिर हमारे उत्तर पूर्वी राज्यों (नगालैंड, असम) से होते हुए हमारे देश से गुज़रकर आगे अफ्रीका चले जाते हैं. कई उकाब सीधे हिमालय पार कर भी हमारे देश में आते हैं. 

लालसिर बत्तख का जोड़ा  red crested pochard (Netta rufina)- यह दक्षिण योरोप से पाकिस्तान के रास्ते सर्दियाँ बिताने हमारे यहां आती है. यह चित्र दार्जीलिंग के पास की एक झील का है.  


पव्रजन के दौरान पक्षी अलग अलग ऊंचाइयों पर उड़कर अपना सफर तय करते हैं. एवेरेस्ट के एक अभियान में चोटी पर छोटे गुदेरे (Bar Tailed Godwit) और सींखपर बत्तख (Northern Pintail) की अस्थियाँ मिली, यानी ये पक्षी वहां 5000 मीटर की ऊंचाई पर उड़ रहे थे.  

सींखपर बत्तख (Anas acuta) का जोड़ा दक्षिणी भारत में   


सरपट्टी सवन (Bar Headed Goose) हिमालय पार करते समय इससे भी अधिक 6500 मीटर  की  ऊंचाई पर उड़ती है. लेकिन अधिकाँश पक्षी प्रवास की यात्राओं में काफी नीचे 150 से 500 मीटर तक की ऊंचाइयों पर उड़ान भरते हैं. बाज़ और उक़ाब अक्सर अपने काफिलों में गोल गोल उड़ते हुए आगे बढ़ते हैं. अपनी यात्रा को आसान बनाने के लिए पक्षी अक्सर पहाड़ों के बीच, नदियों के ऊपर से या समुद्रतट के किनारे आकाश मार्ग बनाते हैं ताकि उन्हें अनुकूल हवा से मदद मिल सके.

पव्रजन यात्रा करने वाले अधिकाँश पक्षी एक ही आकाश मार्ग का इस्तेमाल करते हैं जहाँ एक के बाद एक, अलग अलग पक्षियों के काफिले आकाश से गुज़रते हैं. 

प्रसिद्ध पर्यावरण विशेषज्ञ जॉर्ज मोंटागु के नाम से जाने वाला मोंटागु गिरगिटमार  Montagu Harrier (Circus pygargus)  योरोप से आकर यहां सर्दियां बिताता है 

इस नज़ारे को देखने के लिए वैज्ञानिक और पक्षी प्रेमी अक्सर अपनी दूरबीनें और कैमरे लेकर पहुँचते हैं. 

रैप्टर हिल थाईलैंड में उकाब की प्रतिमा 


तुर्की के पास बोस्फोरस की खाड़ी, स्वीडन के दक्षिण में स्थित फॉलस्टर्बो और थाईलैंड में रैप्टर हिल ऐसे ही कुछ जाने-माने स्थल हैं जहां से हर साल लाखों की संख्या में पक्षी आकाश के रास्ते गुज़रते हैं. अक्सर यहां वैज्ञानिक पहचान के लिए कुछ पक्षियों के पैरों में इलेक्ट्रॉनिक छल्ले बांधकर इन्हें फिर से आकाश में छोड़ देते हैं ताकि इंसान को पक्षियों की इन हवाई यात्राओं को समझने में मदद मिल सके.

तुमने कई बार देखा होगा कि हवा में उड़ते पक्षियों के समूह कई बार अंग्रेजी के V अक्षर बनाकर उड़ते नज़र आते हैं. ऐसा वे हवा को काटकर ऊर्जा बचाने के लिए करते हैं. वैज्ञानिकों ने पाया है कि V के आकार में उड़ती बत्तखें किसी अकेली बत्तख के मुकाबले दस से बीस प्रतिशत ऊर्जा बचाकर लगभग 5 किलोमीटर प्रति घंटा अधिक तेज़ उड़ पाती है. 

सर्दियों में तालाबों/नदियों पर अक्सर दिखाई देने वाला जीरा बाटन little ring plover (Charadrius dubius) जिसकी आँखों का पीला घेरा प्रजननशील नर की निशानी है. यह अपना घोंसला योरोप में बनता है 

प्रजनन के बाद जब बच्चे बड़े होकर पूरी तरह उड़ान भरने लगते हैं तो इन्हें भी इन लम्बी यात्राओं में शामिल कर लिया जाता है. लेकिन देखा गया है कि उड़ते पक्षियों के अधिकाँश समूहों में बच्चे सबसे आगे उड़ते हैं, ताकि वे लगातार बड़ों की निगाहों में बने रहें! 

आकाशमार्ग का यह लंबा सफर कुछ पक्षी तो एक बार में ही पूरा कर लेते हैं तो कुछ रुक रूक कर कई दिनों या कुछ सप्ताहों में  यह रास्ता तय करते हैं. 

बिना रुके एक बार में सबसे लंबी उड़ान भरने का विश्व रिकॉर्ड छोटे गुदरा के नाम है. यह पक्षी अलास्का से उड़कर न्यूज़ीलैंड के अपने प्रजनन स्थलों तक का 11000 किलोमीटर का सफर एक बार में पूरा कर डालता है. कहा जाता है कि इस लम्बी उड़ान के दौरान उसके शरीर का वजन आधे से भी काम रह जाता है.

दुनिया के सबसे लम्बे उड़ाकू पक्षी का बड़ा भाई बड़ा गुदेरा black tailed godwit (Limosa limosa)    

 इससे भी आश्चर्य उड़ान आर्कटिक कुकरी (arctic  tern) की है जो आर्कटिक के अपने प्रजनन स्थलों से पृथ्वी  के दूसरे छोर अंटार्कटिका तक का लम्बा सफर हर साल तय करती है. कुछ वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका में पहचान के लिए  कुछ कुकरियों के पैरों में छल्ले बांधे और फिर दो तीन दिन हवाई जहाज़ों में बैठकर आर्कटिक आए. उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उन्होंने पाया कि  वे पक्षी उनसे पहले ही वहाँ पहुँच चुके थे!

लेकिन कम ऊंचाई पर उड़ने वाले अधिकाँश पक्षी  सीधे सफर करने की जगह बीच बीच में रूककर विश्राम करते और भोजन तलाशते हैं. कई बार यह विश्राम उनके लिए खतरे का कारण भी बन जाता है. पव्रजन के दौरान पक्षियों पर आने वाली विपदाओं  की कुछ और कहानियां अगली बार!

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Wednesday, June 1, 2016

(भाग 6) चल उड़ जा रे पंछी! (Migration of Birds)


बच्चों की एक हिंदी विज्ञान पत्रिका के लिए मैं पक्षियों पर एक श्रृंखला कर रहा हूँ. मित्रों और बहुत से बच्चों का आग्रह था कि इसे 'ब्लॉग' का रूप भी दिया जाए. इसी की पूर्ति में प्रस्तुत है पक्षियों की अनोखी दुनिया की ताज़ा कड़ी जो शायद बच्चों के अलावा बड़ों को भी पसंद आये!


जितेन्द्र भाटिया

चल उड़ जा रे पंछी!


गर्मियों के दिन फिर से आ गए हैं! क्या तुमने सोचा है कि सर्दियों में हर जगह दिखाई देने वाले कुछ परिचित पक्षी गर्मियां आते ही कहाँ गुम हो जाते हैं? गुलाबी मैना (rosy starling)-- जिसके बड़े-बड़े झुण्ड दिसम्बर जनवरी में तारों और पेड़ों पर दिखाई देते हैं. 

गुलाबी मैनाओं (rosy starlings) का झुण्ड, उड़ने की तैयारी में 

लेकिन मार्च के आते आते ये पक्षी किसी लम्बी यात्रा की तैयारी में दिखाई देते हैं. पूंछ थिरकने वाला 'थिरथिरा' (black redstart), तालाब के सुदूर कोने में तैरती छोटी मुर्गाबियाँ (common teal) और हवा में उड़ते देसी चित्रा उकाब (Indian spotted  eagle), ये सब हमारे मैदानी इलाकों में सिर्फ सर्दियों में ही दिखाई देते हैं. 

सर्दियों में तालाबों की मेहमान छोटी मुर्गाबियां (common teal)

यह तो तुम जान ही चुके हो कि  पक्षियों के जीवन की दो सबसे ज़रूरी क्रियाएँ  हैं  भोजन और प्रजनन. इन दोनों के बगैर पक्षी न ज़िंदा रह सकते हैं और न ही अपना वंश बढ़ा सकते हैं. इन्हीं दोनों क्रियाओं को पूरा करने के लिए ये हर साल उड़कर लम्बी यात्राएं करते हैं. ठन्डे प्रदेशों में जब सर्दी, पाला और बर्फ गिरती है तो वहाँ भोजन मिलना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में पक्षी उड़कर हमारे कम ठन्डे मैदानी प्रदेशों में आ जाते हैं जहां इन्हें पर्याप्त भोजन आसानी से मिल जाता है. फिर मार्च के बाद जब हमारे मैदानों में गर्मी बढ़ने लगती है तो ये पक्षी अपने ठन्डे देशों में लौट जाते हैं, घोंसले बनाने, अंडे देने और अपने बच्चों को बड़ा करने के लिए. 

परिचित प्रवासी पक्षी छोटा जुमिज उकाब (Tawny  Eagle) 

तुममें से कई लोग गर्मियों के महीने में छुट्टियां मनाने पहाड़ों में चले जाते हो न? कुछ इसी तरह कई पक्षी गर्मियों में उत्तर के ठन्डे प्रदेशों का रुख करते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि पक्षियों की ये यात्राएं छुट्टी के लिए नहीं, बल्कि भोजन ढूँढ़ने और घोंसले बनाने की जिम्मेदारियां निभाने के लिए होती हैं. 

वैज्ञानिकों का मानना है कि दुनिया में पक्षियों की नौ हज़ार से अधिक प्रजातियों में से लगभग 40 प्रतिशत यानी कोई साढ़े तीन हज़ार प्रजातियां हर साल एक जगह से दूसरी जगह जाने और फिर लौटकर आने का प्रवास या प्रव्रजन (migration) करती हैं. पक्षियों की ये हर साल की दोहरी यात्राएं कई हज़ारों सालों से चली आ रही हैं और ग्रीक के कई पुराने ग्रंथों और बाइबिल तक में इनका ज़िक्र मिलता है. प्रव्रजन कभी एक-तरफ़ा नहीं होता. यानी मौसम बदलने के बाद पक्षी फिर से अपनी वापसी यात्रा पर निकल पड़ते नहीं और यह चक्र साल-दर-साल चलता रहता है. 

हिमालय और उसके पार से सर्दियों में आने वाली सरपट्टी सवन ( Bar Headed Geese)

पक्षियों के प्रव्रजन में सबसे अचम्भे भरा है उनका लम्बी दूरी का प्रवास (long  distance migration) जिसमें ये सर्दियों के बढ़ते ही अपने ठन्डे प्रदेशों को छोड़कर हज़ारों मील दूर हमारे जैसे गर्म देशों की ओर झुण्ड बनाकर उड़े चले आते हैं--ठन्ड से बचने और अनुकूल भोजन की तलाश में. उत्तर भारत के पोखरों, तालाबों और प्राकृतिक जलाशयों में हर साल सर्दियों में कई तरह की बत्तखें--सिलेटी सवन (greylag geese), सरपट्टी सवन (bar-headed geese), सुर्खाब (ruddy shelduck), छोटी मुर्गाबी, चेता, सींखपर, तिदारि (common teal, gargany, northern pintail, northern shoveler) आदि हज़ारों की संख्या में सुदूर ठन्डे प्रदेशों से उड़कर आती हैं. राजस्थान एवं कई अन्य प्रांतों मे कुरजाएं (demoiselle cranes)सितम्बर-अक्टूबर में मंगोलिया और पूर्वी यूरोप से आती हैं और लगभग छह महीने यहाँ गुज़ारकर मार्च के अंत में वापस अपने ठन्डे प्रदेशों में लौट जाती हैं. 

खीचन राजस्थान में मंगोलिया  से हर साल आने वाली कुरजाएं  (Demoiselle Cranes)

पानी के पक्षियों की ही तरह मैदानों और वनों, बगीचों में लहटोरे (shrikes), उकाब (eagles), पत्तई/ गिरगिटमार (harriers), भुपिद्दा (wheatears), मैनाएं (starlings) और कई दूसरे पक्षी इसी तरह लम्बी यात्राओं के बाद हमारे यहां सर्दियां गुज़ारने के लिए आते हैं.       

लंब पूंछ लहटोरा (Long Tailed Shrike)

पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्द्ध  में चूँकि मौसम उलट होता है इसलिए वहां पक्षी सर्दियों में उत्तर की ओर यात्रा करते हैं और गर्मियों में दक्षिण में वापस आ जाते हैं. 

इतनी लम्बी उड़ानें भरकर ये पक्षी बिना भटके अपने चुने हुए स्थान पर कैसे पहुँचते हैं इसे हमारा विज्ञान आज भी पूरी तरह समझ नहीं पाया है. इसपर फिर कभी विस्तार से बात करेंगे.  

सभी पक्षी इतनी लम्बी यात्राएं करते हों, ऐसा नहीं है.  कुछ पक्षी गर्मियों में सिर्फ छोटी दूरी का प्रवास (short  distance migration) करते हैं. जैसे हमारी स्थानीय गुगरल और सिल्ही बत्तखें (spot billed and lesser whistling ducks) पानी और भोजन की तलाश में आस पास के पानी के क्षेत्रों में चली जाती हैं.

स्थानीय पक्षी गुगरल बत्तख (Spot Billed Ducks)

 पहाड़ी क्षेत्रों के पक्षियों में इससे मिलता-जुलता एक और प्रवास होता है.  भूटान में 5000 मीटर की ऊंचाइयों पर तीतर प्रजाति का एक पक्षी रक्तिम फेजेंट (blood  pheasant) पाया जाता है जो अत्यधिक सर्दी पड़ने पर 3000 मीटर तक नीचे उतर आता है और मौसम बदलने पर फिर वापस ऊपर चला जाता है. हिमालय की ठंडी आबोहवा में रहने वाले मनुष्यों की तरह वहाँ के कई दूसरे पक्षी भी यही करते हैं. पक्षियों के ठण्ड से जुड़े ऊंचाइयों के इस प्रवास को  हम altitudinal migration कहते हैं.

पहाड़ों में रहने वाला रक्तिम फेजेंट (Blood Pheasant)

पक्षियों के पंख उनके सबसे ज़रूरी अंग होते हैं. सभी पक्षियों के पंख हर साल झरते हैं और उनके स्थान पर नए पंख उग आते हैं. पंखों की इस प्रक्रिया को अंग्रेजी में moulting कहते हैं. शाही चकवा (common shelduck) जैसे कुछ पक्षी पंख झरने के बाद इस कदर नंगे और पंख विहीन हो जाते हैं कि  नए पंख आने तक उनके लिए उड़ना संभव नहीं होता. ऐसे पक्षी पंखों के झरने से पहले किसी सुरक्षित निर्जन स्थल पर चले जाते हैं जहाँ नए पंखों के आने तक वे  बाहरी खतरों से बचे रह सकें. तो यह पक्षियों का एक और तरह का प्रवास हुआ जिसे moulting migration का नाम दिया जाता है. 

शाह चकवा (Common  Shelduck) जो पंखों के झरते समय एक निर्जन द्वीप में चला जाता है  

लेकिन साल में दो बार यात्राएं करने वाले इन पक्षियों के अलावा बहुत से पक्षी ऐसे भी हैं जो अपना सारा समय एक ही स्थान पर बिताते हैं. इन्हें तुम स्थानीय पक्षी या resident birds  कहा जा सकता है. 

और इन सब पक्षियों के अलावा कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपनी यात्राओं के दौरान कुछ समय के लिए बीच के स्थलों पर रुकते हैं, जैसे  दिल्ली से चेन्नई और वहां से वापस आने वाली रेलगाड़ी बीच में नागपुर स्टेशन पर रूकती है. 

योरोपियन नीलकंठ (European Roller) जो योरोप से अफ्रीका की यात्रा के बीच सितम्बर में राजस्थान से गुज़रता है 

देसी नीलकंठ पक्षी (Indian  roller) से मिलता-जुलता एक विलायती  नीलकंठ (European Roller) भी होता है जो सर्दियों में यूरोप से लम्बी प्रवास यात्रा पर अफ्रीका की ओर निकलता है. लेकिन वहाँ सीधे जाने की जगह यह हवाओं के अनुकूल पूर्वी भारत के राजस्थान से होता हुआ फिर समुद्र के रास्ते अफ्रीका का  रुख करता है. तो इस तरह सर्दियों से पहले सितम्बर में यह राजस्थान पहुँचता है और वापसी यात्रा पर फेब्रुअरी के आसपास इसे फिर से यहाँ देखा जा सकता है. इस तरह भारत के लिए यह पक्षी मुसाफिर प्रवासी या passage  migrant हुआ. ऐसे ही कुछ और पक्षी भी हैं जो अपनी यात्राओं में भारत से होकर गुज़रते हैं.


तो यह हुई पक्षियों की लम्बी और छोटी यात्राओं  की अलग अलग किस्में!  इन यात्राओं से जुड़ी  कुछ और दिलचस्प कहानियां अभी बाकी हैं!  
   
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Sunday, January 17, 2016

(भाग5) पंखों की कहानी -- यानी अंडे का 'फंडा'!

बच्चों की एक हिंदी विज्ञान पत्रिका के लिए मैं पक्षियों पर एक श्रृंखला कर रहा हूँ. मित्रों और बहुत से बच्चों का आग्रह था कि इसे 'ब्लॉग' का रूप भी दिया जाए. इसी की पूर्ति में प्रस्तुत है पक्षियों की अनोखी दुनिया की ताज़ा कड़ी जो शायद बच्चों के अलावा बड़ों को भी पसंद आये!

जितेन्द्र भाटिया
पंखों की कहानी -- यानी अंडे का 'फंडा'!
बच्चों और बड़ों की एक लोकप्रिय अनबूझ पहेली है कि 'पहले मुर्गी आयी या अंडा?' और इसी से जुड़ा दूसरा सवाल यह हो सकता है कि इन दोनों के आने से पहले इस दुनिया में क्या था?

हमारे लक्कड़ दादा लंगूर महाशय!

वैज्ञानिक डार्विन का मानना है कि इस दुनिया में हर जीवित जीव अपने पहले के किसी जीव से विकसित होकर धरती पर आया है. जीवों के इस विकास में लाखों वर्ष लग गए. डार्विन के इसी सिद्धांत से बंदरों को मनुष्य का पूर्वज माना गया है. माना जाता है कि पक्षियों का जन्म और उनका विकास भी इसी तरह पूर्व प्रजाति के किसी पक्षी से हुआ है. पत्थरों में दबे जीवाश्मों (fossils) से इस बात के कई प्रमाण मिलते हैं. कभी कभी धरती से मिलने वाली हड्डियों से भी इन प्राग् ऐतिहासिक प्रजातियों का पता चलता है. इन जीवाश्मों और हड्डियों की मदद से वैज्ञानिक प्रजातियों की उम्र और इनके जीवनकाल का अंदाजा लगाते हैं. 

कहा जाता है कि दुनिया के पहले दैत्याकार जीव डायनासोर (dinosaur) आज से कोई 2000 लाख वर्ष पहले जुरासिक युग में धरती पर आये. इन्हीं में से एक मांस भक्षी छोटे आकार की डायनासोर प्रजाति 'थेरोपोड' का विकास आज से 1500 लाख साल पहले हुआ. माना जाता है कि इसी 'थेरोपोड' से आगे चलकर धीरे-धीरे कई लाखों वर्षों में पक्षियों ने अपना रूप लिया.  

म्यूजियम में थेरोपोड डायनासोर का कंकाल 

दिलचस्प बात यह है कि जुरासिक युग के इन डायनासोर जीवों में थेरोपोड के अलावा किसी भी डायनासोर की अगली पीढ़ियां अब दुनिया में बाकी नहीं हैं! बाकी डायनासोर जीवों की तरह थेरोपोड के भी दाँत थे. लेकिन हज़ारों सालों के विकास के बाद पक्षियों के दाँत जाते रहे और इनके स्थान पर चोंच विकसित हुई जो पक्षियों को अपना भोजन ढूंढने और पकड़ने में सहायता देती है. ज़मीन हो या पानी, रेत हो या दलदल, अपनी अलग आकार की चोंचों  से पक्षी हर जगह अपना भोजन ढूंढ ही लेते हैं. 

पोखर में चोंच से कीड़े पकड़ता छोटा गुदरा  Bar Tailed Godwit (Limosa lapponica) 

चोंच के अलावा भी पक्षियों में कई गुण मिलते है, जो एक तरह से उनकी पहचान हैं! दो टांगें, गर्म खून, रीढ़ की हड्डी, प्रजनन के लिए अंडे देना और इन सबसे ऊपर- उड़ने के लिए दो आश्चर्यजनक जादुई पंख! छोटे नन्हे शक्करखोरे से लेकर विशालकाय शुतुरमुर्ग, सबमें तुम्हें यह पहचान मिलेगी. वैज्ञानिक शब्दावली में सभी पक्षियों को एक नाम दिया गया है-- एवीएल aviale. इस अंग्रेज़ी नाम का सम्बन्ध उड़ने से है. लेकिन सभी पक्षी उड़ते हों, ऐसा नहीं है. इनमें अंतर दिखाने के लिए वैज्ञानिकों ने वर्तमान युग में पक्षियों को दो बड़ी जातियों में बांटा है- 'न उड़ने वाले' --neomithes और बाकी के सारे 'उड़ने वाले'-- neognathae. 


कीवी पक्षी (Apteryx )और उसका अंडा  

दुनिया में पक्षियों की कोई पचास ऐसी प्रजातियां हैं जिनके डैने नहीं होते, या फिर होते हैं तो ऐसे जिनसे ये हवा में छलांग तो लगा सकते हैं पर उड़ नहीं सकते. लेकिन इस एक अंतर को छोड़कर उनमें बाकी गुण दूसरे पक्षियों जैसे ही होते हैं. और इसीलिये इन्हें पक्षी ही माना जाता है. न्यूज़ीलैंड में पाया जाने वाला 'कीवी' ऐसा ही एक डैना रहित पक्षी है जिसके अंडे का आकार काफी बड़ा होता है.  

पेंगुइन पक्षी 

अंटार्कटिका के ठन्डे प्रदेश में पाये जाने वाले पेंगुइन पक्षी भी उड़ नहीं सकते. डैने की जगह उनका एक चप्पू नुमा flapper होता है जिसे वे पानी में तैरते समय चप्पू की तरह इस्तेमाल करते हैं. अफ्रीका में पाया जाने वाला शुतुरमुर्ग दुनिया का सबसे बड़ा पक्षी है जिसके पंख उड़ने की जगह बहुत तेज़ दौड़ने के काम आते हैं. कई देशों में शुतुरमुर्ग को भी मुर्गियों की तरह बड़े बड़े बाड़ों में अंडों और मांस के लिए पाला जाता है.    

मादा शुतुरमुर्ग  (Struthio camelus) 

बस इन गिने चुने 'न उड़ने वाले' पक्षियों को छोड़कर बाकी सारे पक्षी अपने पंखों के सहारे उड़ सकते हैं. पक्षियों के ये पंख भी कई आकार के होते हैं. इनके सहारे ये आकाश में अलग अलग ऊंचाइयों पर उड़ते हैं. कुछ पक्षियों के मज़बूत डैने लम्बी उड़ानों के लिए उपयुक्त होते हैं. गिद्ध और उकाब अपने चौड़े आकार के डैनों के सहारे बहुत ऊँचाई पर हवा में तैरते दिखाई देते हैं.  

हवा में उड़ता काला गिद्ध (Cinereous Vulture) (Aegypius monachus)   

इनके विपरीत मोर और तीतर जैसे पक्षी अपना अधिकाँश समय ज़मीन पर गुज़ारते हैं. इनके पंख थोड़े समय के लिए कुछ ऊँचाई तक उड़ तो सकते हैं पर अधिक समय तक नहीं. 

तीतर के इक पीछे तीतर (Grey Francolin) (Francolinus pondicerianus)  

इसके विपरीत अबाबील-पतासी सारा दिन आकाश में उड़ती रहती हैं. इनके हल्के पंख इन्हें हवा में लगातार चक्कर काटने में मदद करते हैं. महासागर के कुछ पक्षी तो लगातार पानी के ऊपर फैले आकाश में ही सारा जीवन गुज़ारते हैं और उनमें से कुछ तो उड़ते-उड़ते ही अपनी नींद भी पूरी कर लेते हैं. इन्हीं जादुई पंखों के सहारे बहुत से पक्षी हर साल दो बार लम्बी उड़ानें भी भरते हैं. पक्षियों की इन लम्बी हवाई यात्राओं की आश्चर्यजनक कहानियाँ हम आगे बताएँगे! 
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