Thursday, September 22, 2016

(भाग 8) प्रवासी पक्षियों की कुछ और कहानियां....


हिंदी की एक विज्ञान पत्रिका के लिए मैं पक्षियों पर एक धारावाहिक blog करता हूँ. उसी की यह ताज़ा आठवीं कड़ी !

जितेन्द्र भाटिया
प्रवासी पक्षियों की कुछ और कहानियाँ.... 

यह तो हम तुम्हें बता ही चुके हैं कि भोजन और आबोहवा के लिए बहुत सारे पक्षी हर साल लम्बी यात्राएं करते हैं. अक्सर इन यात्राओं में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है और कई बार तो उनकी जान पर ही बन आती है. तो इस बार तुम्हें सुनाते हैं पक्षियों की यात्राओं से जुड़ी कुछ दिल छू लेने वाली कहानियां! 

गुजरात में कच्छ का एक प्रमुख शहर है भुज! इस शहर के बीचोंबीच एक 450 पुरानी झील है हरमिरसर. सर्दियाँ आते ही यह झील दूर दूर से आये प्रवासी पक्षियों से भर जाती है. कई तरह की बत्तखें, कुरारियां, पनकौवे, छोटे गुदेरे, बगुले और इन सभी के साथ बड़े-बड़े सफ़ेद हवासिल great white pelicans (pelacanus oncrotalus), शान से झील के एक छोर से दूसरे छोरे  तक फुर्सत में धीरे-धीरे तैरते हुए.

हरमिरसर झील में पक्षियों का झुण्ड 

सर्दियों के ख़त्म होते ही ये सारे पक्षी एक-एक कर वापस योरोप, मंगोलिया या साइबेरिया लौट जाएंगे. हवासील हमेशा एक झुण्ड में तैरते हैं. अपनी तीन दिनों की यात्रा में हम जितनी बार उस झील पर गए, हमने देखा कि झील के बीचोंबीच तैर रहे हवासिलों के बड़े से झुण्ड से अलग तीन हवासिल हमेशा किनारे के पास तैरते मिलते हैं. ध्यान से देखने पर पता चला कि उनमें से एक हवासिल चोटिल है. 

चोटिल हवासिल अपने पंख सूखाता हुआ 

हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि किसी अजनबी के पास आते ही वे झट किनारे से दूर चले जाते हैं लेकिन किनारे पर कपड़े धो रही औरतों से ये ज़रा भी नहीं डरते. हमारे पूछे जाने पर एक औरत ने बताया कि तीन साल पहले एक कुत्ते ने पानी में घुसकर इस हवासिल का पंख तोड़ डाला था. जब मार्च में इनके वापस लौटने का समय आया तो घायल हवासिल ने पंख  फड़फड़ाकर पाया कि वह उड़ नहीं सकता. झुण्ड के सारे हवासिल एक एक कर उड़ गए. लेकिन ये दो हवासिल संकट में अपने चोटिल दोस्त का साथ छोड़ने की जगह उसके साथ यहीं रुक गए. तबसे ये तीनों हवासिल बारहों महीने यहीं साथ साथ रहते हैं. और अब तो ये हमें पहचानने भी लगे हैं. दोस्ती की खातिर अपनी जन्मस्थली छोड़ने वाले ये तीनों सच्चे मित्र हरमिरसर झील में  आज भी आपको साथ-साथ तैरते मिल जायेंगे. 

चोटिल हवासिल और उसके दोनों दोस्त 

 हिन्द महासागर में  टापुओं का एक खूबसूरत द्वीप समूह है सेशेल्स जो अपने सुन्दर समुद्र तटों के लिए विख्यात है. यहीं एक छोटा सा पक्षी द्वीप (Bird Island) है जहां हर साल लाखों की संख्या में पक्षी प्रजनन के लिए आते हैं और बच्चे बड़े होने के बाद यहाँ से उड़ जाते हैं.

पक्षी द्वीप seychelles

 इस द्वीप पर सांप, चूहे और खरगोश नहीं हैं, जिसके कारण पक्षी अपने अण्डों की चिंता किये बगैर जमीन पर भी घोंसले बना सकते हैं. इस द्वीप पर प्रजनन के लिए आने वाले पक्षियों  में सबसे प्रमुख--सलेटी कुकरियाँ (Sooty Terns) (Onychoprion fuscata) हर साल पांच से छः लाख की संख्या में घोंसले बनाने यहाँ आती हैं.

पक्षी द्वीप पर सलेटी कुकरियों के घोंसले 

 वैज्ञानिकों ने पाँव में छल्ले लगाकर पहचान की है कि वही पक्षी कोई चार साल बाद यहाँ लौटते हैं. बीच के चार साल ये पक्षी समुद्र पर उड़ते हुए गुजारते हैं.  

हवा में उड़ती सलेटी कुकरियाँ

मज़े की बात यह है कि सलेटी कुकरी को पानी मैं तैरना नहीं आता लेकिन फिर भी इसका अधिकाँश समय समुद्र पर उड़ते हुए बीतता है. समुद्र पर उड़ते उड़ते ही यह गोते लगाकर मछलियाँ पकड़ती है और कई बार उड़ते उड़ते ही हवा में अपनी नींद भी पूरी कर लेती है.

जिस तरह मनुष्यों में दूसरों का सामन छीनने वाले डाकू होते हैं, उसे तरह पक्षियों में भी समुद्री डाकू होते हैं! 

पेड़ों पर बैठे डाकू जहाजी पक्षी 

पक्षी द्वीप पर विशालकाय डैनों वाला जहाजी पक्षी great frigate bird (Fregata minor) कुछ इसी तरह के समुद्री लुटेरे का सा काम करता है. कुकरियाँ जब समुद्र से मुंह में घोंसले के बच्चों के लिए लौट रही होती हैं तो ये लुटेरे पक्षी उनके पीछे पड़कर उन्हें इतना थका देते हैं कि वे चोंच में पकड़ी मछली को छोड़ने पर मजबूर हो जाती हैं. और तब ये पक्षी उस छोड़ी हुई मछली को हवा में ही पकड़कर अपना भोजन बना लेते हैं!  

लम्बी यात्रा पर निकले प्रवासी पक्षियों को यूं तो रास्ते में कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. लेकिन इन यात्राओं पर पक्षियों के लिए सबसे बड़ा खतरा है मनुष्य! हर वर्ष यात्रा पर निकले लाखों पक्षियों में से बहुत सारे रास्ते में इंसान की बंदूकों के निशाने से मारे जाते हैं. यह खतरा प्रवास में कम ऊँचाई पर उड़ने वाले पक्षियों के लिए सबसे अधिक होता है.

अमूर शाहीन 

ऐसा ही एक पक्षी है बाज़ प्रजाति का अमूर श्यान या शाहीन amur falcon (Falco amurensis) जो बहुत कम ऊँचाई पर उड़ता हुआ अपनी प्रवास यात्रा में भारत से होकर गुज़रता है, और कई बार उसकी यह कम ऊँचाई की यात्रा ही उसकी मौत का कारण बन जाती है. हर साल हज़ारों अमूर के झुण्ड अपने जन्मस्थल साइबेरिया से उड़कर दक्षिणी अफ्रीका की 22000 किलोमीटर की लम्बी यात्रा तय करते हैं. इंसान को कुछ वर्ष पहले ही सॅटॅलाइट की मदद से उनके हवाई मार्ग का पता चला जिसमें वे उत्तर पूर्व भारत के ऊपर से होते हुए अफ्रीका पहुँचते हैं. 

नागालैंड में पकड़े निरीह अमूर शाहीन 

उनके लिए इस यात्रा का सबसे मारक हिस्सा था नागालैंड, जहाँ अभी कुछ समय पहले तक 120 हज़ार या इससे भी अधिक अमूर हर साल अपने मांस के लिए बेरहमी से मार दिए जाते थे. एक समय तो ऐसा लगा कि बड़े पैमाने पर इन नृशंस हत्याओं के कारण धरती से इस सुन्दर पक्षी का नामोनिशान ही मिट जाएगा. तब बहुत सारी संस्थाओं के साथ नागालैंड सरकार और चर्च ने मिलकर  अमूर शाहीन को बचाने के लिए एक बड़ा अभियान शुरू किया जो आज भी चल रहा है. 

मच्छरदानी में बंद किये अमूर, मारे जाने से पहले  

इस पक्षी को बचाने का महत्त्व बच्चों को समझाना सबसे आसन था. फिर उनके द्वारा उनके परिवार वालों को भी जागरूक किया गया. संस्थाओं ने इसके लिए आकर्षक पोस्टर के ज़रिये सन्देश भी दिया कि यह पक्षी हमारे देश का मेहमान है और इसे बचाना हम सबका फ़र्ज़ है. शिकार करने वालों को कानून से भी डराया गया.

नागालैंड के मुख्यमंत्री 'अमूर बचाओ अभियान' से जुड़े बच्चों के साथ   

 नागालैंड में सबसे अधिक लोग बैप्टिस्ट क्रिश्चियन  धर्म को मानते हैं. वहां की चर्च ने जब इस अभियान को समर्थन देते हुए सन्देश दिया कि बाइबिल में भी शाहीन जैसे जीवभक्षी पक्षियों को खाने की मनाही है तो पुराने ख्यालों वाले लोग भी मान गए.  इस सारे अभियान का अच्छा परिणाम यह निकला है कि पिछले दो तीन वर्षों में नागालैंड में अमूर शाहीन का शिकार काफी कम हो गया है. यह प्रयास यदि आगे चलकर पूरी तरह सफल हो गया तो अमूर शाहीन सचमुच नागालैंड का शुक्रगुजार होगे. 

'अमूर बचाओ अभियान' का एक पोस्टर 

(हम  Conservation India और Ramki Srinivasan के आभारी हैं जिन्होंने इस कड़ी के लिए अमूर शाहीन और उसके शिकार से जुड़े कुछ चित्र भेजे).


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