Wednesday, June 1, 2016

(भाग 6) चल उड़ जा रे पंछी! (Migration of Birds)


बच्चों की एक हिंदी विज्ञान पत्रिका के लिए मैं पक्षियों पर एक श्रृंखला कर रहा हूँ. मित्रों और बहुत से बच्चों का आग्रह था कि इसे 'ब्लॉग' का रूप भी दिया जाए. इसी की पूर्ति में प्रस्तुत है पक्षियों की अनोखी दुनिया की ताज़ा कड़ी जो शायद बच्चों के अलावा बड़ों को भी पसंद आये!


जितेन्द्र भाटिया

चल उड़ जा रे पंछी!


गर्मियों के दिन फिर से आ गए हैं! क्या तुमने सोचा है कि सर्दियों में हर जगह दिखाई देने वाले कुछ परिचित पक्षी गर्मियां आते ही कहाँ गुम हो जाते हैं? गुलाबी मैना (rosy starling)-- जिसके बड़े-बड़े झुण्ड दिसम्बर जनवरी में तारों और पेड़ों पर दिखाई देते हैं. 

गुलाबी मैनाओं (rosy starlings) का झुण्ड, उड़ने की तैयारी में 

लेकिन मार्च के आते आते ये पक्षी किसी लम्बी यात्रा की तैयारी में दिखाई देते हैं. पूंछ थिरकने वाला 'थिरथिरा' (black redstart), तालाब के सुदूर कोने में तैरती छोटी मुर्गाबियाँ (common teal) और हवा में उड़ते देसी चित्रा उकाब (Indian spotted  eagle), ये सब हमारे मैदानी इलाकों में सिर्फ सर्दियों में ही दिखाई देते हैं. 

सर्दियों में तालाबों की मेहमान छोटी मुर्गाबियां (common teal)

यह तो तुम जान ही चुके हो कि  पक्षियों के जीवन की दो सबसे ज़रूरी क्रियाएँ  हैं  भोजन और प्रजनन. इन दोनों के बगैर पक्षी न ज़िंदा रह सकते हैं और न ही अपना वंश बढ़ा सकते हैं. इन्हीं दोनों क्रियाओं को पूरा करने के लिए ये हर साल उड़कर लम्बी यात्राएं करते हैं. ठन्डे प्रदेशों में जब सर्दी, पाला और बर्फ गिरती है तो वहाँ भोजन मिलना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में पक्षी उड़कर हमारे कम ठन्डे मैदानी प्रदेशों में आ जाते हैं जहां इन्हें पर्याप्त भोजन आसानी से मिल जाता है. फिर मार्च के बाद जब हमारे मैदानों में गर्मी बढ़ने लगती है तो ये पक्षी अपने ठन्डे देशों में लौट जाते हैं, घोंसले बनाने, अंडे देने और अपने बच्चों को बड़ा करने के लिए. 

परिचित प्रवासी पक्षी छोटा जुमिज उकाब (Tawny  Eagle) 

तुममें से कई लोग गर्मियों के महीने में छुट्टियां मनाने पहाड़ों में चले जाते हो न? कुछ इसी तरह कई पक्षी गर्मियों में उत्तर के ठन्डे प्रदेशों का रुख करते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि पक्षियों की ये यात्राएं छुट्टी के लिए नहीं, बल्कि भोजन ढूँढ़ने और घोंसले बनाने की जिम्मेदारियां निभाने के लिए होती हैं. 

वैज्ञानिकों का मानना है कि दुनिया में पक्षियों की नौ हज़ार से अधिक प्रजातियों में से लगभग 40 प्रतिशत यानी कोई साढ़े तीन हज़ार प्रजातियां हर साल एक जगह से दूसरी जगह जाने और फिर लौटकर आने का प्रवास या प्रव्रजन (migration) करती हैं. पक्षियों की ये हर साल की दोहरी यात्राएं कई हज़ारों सालों से चली आ रही हैं और ग्रीक के कई पुराने ग्रंथों और बाइबिल तक में इनका ज़िक्र मिलता है. प्रव्रजन कभी एक-तरफ़ा नहीं होता. यानी मौसम बदलने के बाद पक्षी फिर से अपनी वापसी यात्रा पर निकल पड़ते नहीं और यह चक्र साल-दर-साल चलता रहता है. 

हिमालय और उसके पार से सर्दियों में आने वाली सरपट्टी सवन ( Bar Headed Geese)

पक्षियों के प्रव्रजन में सबसे अचम्भे भरा है उनका लम्बी दूरी का प्रवास (long  distance migration) जिसमें ये सर्दियों के बढ़ते ही अपने ठन्डे प्रदेशों को छोड़कर हज़ारों मील दूर हमारे जैसे गर्म देशों की ओर झुण्ड बनाकर उड़े चले आते हैं--ठन्ड से बचने और अनुकूल भोजन की तलाश में. उत्तर भारत के पोखरों, तालाबों और प्राकृतिक जलाशयों में हर साल सर्दियों में कई तरह की बत्तखें--सिलेटी सवन (greylag geese), सरपट्टी सवन (bar-headed geese), सुर्खाब (ruddy shelduck), छोटी मुर्गाबी, चेता, सींखपर, तिदारि (common teal, gargany, northern pintail, northern shoveler) आदि हज़ारों की संख्या में सुदूर ठन्डे प्रदेशों से उड़कर आती हैं. राजस्थान एवं कई अन्य प्रांतों मे कुरजाएं (demoiselle cranes)सितम्बर-अक्टूबर में मंगोलिया और पूर्वी यूरोप से आती हैं और लगभग छह महीने यहाँ गुज़ारकर मार्च के अंत में वापस अपने ठन्डे प्रदेशों में लौट जाती हैं. 

खीचन राजस्थान में मंगोलिया  से हर साल आने वाली कुरजाएं  (Demoiselle Cranes)

पानी के पक्षियों की ही तरह मैदानों और वनों, बगीचों में लहटोरे (shrikes), उकाब (eagles), पत्तई/ गिरगिटमार (harriers), भुपिद्दा (wheatears), मैनाएं (starlings) और कई दूसरे पक्षी इसी तरह लम्बी यात्राओं के बाद हमारे यहां सर्दियां गुज़ारने के लिए आते हैं.       

लंब पूंछ लहटोरा (Long Tailed Shrike)

पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्द्ध  में चूँकि मौसम उलट होता है इसलिए वहां पक्षी सर्दियों में उत्तर की ओर यात्रा करते हैं और गर्मियों में दक्षिण में वापस आ जाते हैं. 

इतनी लम्बी उड़ानें भरकर ये पक्षी बिना भटके अपने चुने हुए स्थान पर कैसे पहुँचते हैं इसे हमारा विज्ञान आज भी पूरी तरह समझ नहीं पाया है. इसपर फिर कभी विस्तार से बात करेंगे.  

सभी पक्षी इतनी लम्बी यात्राएं करते हों, ऐसा नहीं है.  कुछ पक्षी गर्मियों में सिर्फ छोटी दूरी का प्रवास (short  distance migration) करते हैं. जैसे हमारी स्थानीय गुगरल और सिल्ही बत्तखें (spot billed and lesser whistling ducks) पानी और भोजन की तलाश में आस पास के पानी के क्षेत्रों में चली जाती हैं.

स्थानीय पक्षी गुगरल बत्तख (Spot Billed Ducks)

 पहाड़ी क्षेत्रों के पक्षियों में इससे मिलता-जुलता एक और प्रवास होता है.  भूटान में 5000 मीटर की ऊंचाइयों पर तीतर प्रजाति का एक पक्षी रक्तिम फेजेंट (blood  pheasant) पाया जाता है जो अत्यधिक सर्दी पड़ने पर 3000 मीटर तक नीचे उतर आता है और मौसम बदलने पर फिर वापस ऊपर चला जाता है. हिमालय की ठंडी आबोहवा में रहने वाले मनुष्यों की तरह वहाँ के कई दूसरे पक्षी भी यही करते हैं. पक्षियों के ठण्ड से जुड़े ऊंचाइयों के इस प्रवास को  हम altitudinal migration कहते हैं.

पहाड़ों में रहने वाला रक्तिम फेजेंट (Blood Pheasant)

पक्षियों के पंख उनके सबसे ज़रूरी अंग होते हैं. सभी पक्षियों के पंख हर साल झरते हैं और उनके स्थान पर नए पंख उग आते हैं. पंखों की इस प्रक्रिया को अंग्रेजी में moulting कहते हैं. शाही चकवा (common shelduck) जैसे कुछ पक्षी पंख झरने के बाद इस कदर नंगे और पंख विहीन हो जाते हैं कि  नए पंख आने तक उनके लिए उड़ना संभव नहीं होता. ऐसे पक्षी पंखों के झरने से पहले किसी सुरक्षित निर्जन स्थल पर चले जाते हैं जहाँ नए पंखों के आने तक वे  बाहरी खतरों से बचे रह सकें. तो यह पक्षियों का एक और तरह का प्रवास हुआ जिसे moulting migration का नाम दिया जाता है. 

शाह चकवा (Common  Shelduck) जो पंखों के झरते समय एक निर्जन द्वीप में चला जाता है  

लेकिन साल में दो बार यात्राएं करने वाले इन पक्षियों के अलावा बहुत से पक्षी ऐसे भी हैं जो अपना सारा समय एक ही स्थान पर बिताते हैं. इन्हें तुम स्थानीय पक्षी या resident birds  कहा जा सकता है. 

और इन सब पक्षियों के अलावा कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपनी यात्राओं के दौरान कुछ समय के लिए बीच के स्थलों पर रुकते हैं, जैसे  दिल्ली से चेन्नई और वहां से वापस आने वाली रेलगाड़ी बीच में नागपुर स्टेशन पर रूकती है. 

योरोपियन नीलकंठ (European Roller) जो योरोप से अफ्रीका की यात्रा के बीच सितम्बर में राजस्थान से गुज़रता है 

देसी नीलकंठ पक्षी (Indian  roller) से मिलता-जुलता एक विलायती  नीलकंठ (European Roller) भी होता है जो सर्दियों में यूरोप से लम्बी प्रवास यात्रा पर अफ्रीका की ओर निकलता है. लेकिन वहाँ सीधे जाने की जगह यह हवाओं के अनुकूल पूर्वी भारत के राजस्थान से होता हुआ फिर समुद्र के रास्ते अफ्रीका का  रुख करता है. तो इस तरह सर्दियों से पहले सितम्बर में यह राजस्थान पहुँचता है और वापसी यात्रा पर फेब्रुअरी के आसपास इसे फिर से यहाँ देखा जा सकता है. इस तरह भारत के लिए यह पक्षी मुसाफिर प्रवासी या passage  migrant हुआ. ऐसे ही कुछ और पक्षी भी हैं जो अपनी यात्राओं में भारत से होकर गुज़रते हैं.


तो यह हुई पक्षियों की लम्बी और छोटी यात्राओं  की अलग अलग किस्में!  इन यात्राओं से जुड़ी  कुछ और दिलचस्प कहानियां अभी बाकी हैं!  
   
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1 comment:

  1. Meet uncle, it is a v good source for educators as well as children..besides the information on migration, I appreciate the local.names of each bird! I think it is a fantastic idea to write this blog. Do u think it can be?

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