बच्चों की एक हिंदी विज्ञान पत्रिका के लिए मैं पक्षियों पर एक श्रृंखला कर रहा हूँ. मित्रों और बहुत से बच्चों का आग्रह था कि इसे 'ब्लॉग' का रूप भी दिया जाए. इसी की पूर्ति में प्रस्तुत है पक्षियों की अनोखी दुनिया की ताज़ा कड़ी जो शायद बच्चों के अलावा बड़ों को भी पसंद आये!
जितेन्द्र भाटिया
नाम में क्या रक्खा है?
तुम इस दुनिया में हर चीज़ को नाम से पहचानते हो न! लेकिन कक्षा में अगर एक ही नाम के दो सहपाठी हों तो? तब कई बार हम पहचान के लिए एक मोहन को ‘मोटू’ और दूसरे को ‘लम्बू मोहन' कहकर पुकारते हैं. यानी उनके नाम से पहले हम एक विशेषण लगा देते हैं ताकि उनकी पहचान आसानी से हो जाए.
टुइयाँ तोता (Plum Headed Parakeet ) (Pisttacula cyanocephala) |
सर्दियों में हमारे देश में उत्तरी ठन्डे प्रदेशों से कई पक्षी आते हैं. इनमें से एक है काला सिर थिरथिरा या black redstart. यह पक्षी ज़मीन पर चलते चलते बीच बीच में थिरथिराता है और इसीलिये इसे 'थिरथिरा' कहा जाता है.
काला सिर थिरथिरा (Black Redstart )(Phoenicurus orchruros) |
सिपाही या टोपीदार बुलबुल (Red Whiskered Bulbul )(Pycnonotus jocusus) |
नामकरण का यह संकट सिर्फ पक्षियों के साथ ही नहीं, बल्कि जानवरों, सांपों, कीड़ों, वनस्पतियों और स्वयं वनमानुष और मनुष्य, यानी हर जीवित प्राणी के नामों को लेकर आता है. अलग अलग भाषाओं और प्रदेशों में इनके अलग अलग नाम हैं. तब वैज्ञानिकों को लगा कि सभी जीवित प्राणियों के प्रचलित नामों के समानांतर उनका एक सर्व मान्य वैज्ञानिक नामकरण भी होना चाहिए जिसे सब लोग मानें और जिसमें फेरबदल की कोई गुंजाइश न हो. विभिन्न भाषाओं में जीवों के नामों के साथ यदि उस जीव का विज्ञानिक नाम भी हो तो सब आसानी से जान जाएंगे कि हम किस जीव या पक्षी की बात कर रहे हैं.
सोलहवीं शताब्दी के योरोप में ज्ञान अध्ययन की प्रमुख भाषा लैटिन थी. इसी में सबसे पहले जीवों और वनस्पतियों के वैज्ञानिक नामकरण की शुरुआत हुई. लेकिन आरम्भ में इसमें कई मतभेद थे. जीवों के लिए लैटिन में पहली सर्व मान्य दो शब्दों वाली binomial नामावली पद्धति विकसित करने का श्रेय स्वीडन के डॉक्टर और वनस्पति शास्त्री कार्ल लिनेयस को जाता है.
इन्होंने अट्ठारहवीं शताब्दी के मध्य में अपनी पुस्तकों ‘स्पीशीज प्लांटेरम’ और ‘सिस्टमा नेचुरे’ में पहली बार वनस्पतियों और जीवों के लिए दो शब्दों वाली नामावली का इस्तेमाल किया. इसी के आधार पर आगे चलकर ‘प्राणीशास्त्रीय नामकरण की अंतरराष्ट्रीय पद्धति’ (ICZN) बनी जो आज भी पक्षियों सहित सभी प्राणियों के वैज्ञानिक नामकरण का काम कर रही है. परंपरा के अनुसार यह शब्दावली लैटिन भाषा में हैं. इसी के अंतर्गत मनुष्य जाति को वैज्ञानिक नाम मिला है –Homo sapiens !
जीवों के नामकरण की इस द्वि-शब्दी वैज्ञानिक को समझना बहुत आसान है. इसमें दो शब्द होते हैं. पहला शब्द पक्षी या जीव की विशिष्ट जाति को इंगित करता है और दूसरा उसके किसी ख़ास गुण को या भौगोलिक क्षेत्र को, जहां वह पाया जाता है. कई बार दूसरा शब्द उस जीव को पहली बार ढूंढने वाले व्यक्ति के नाम पर भी आधारित हो सकता है. हमारे देश के विख्यात पक्षीशास्त्री सलीम अली ने केरल में जिस संकटग्रस्त फल-फूल खाने वाले दुर्लभ चमगादड़ को ढूंढ निकाला था, उसका वैज्ञानिक नाम रक्खा गया है Latidens salimalii! इसमें पहला शब्द Latidens चमगादड़ों की जाति को दर्शाता है और दूसरा शब्द सलीम अली के पहले नाम से बना है.
गुलाबी मैना (Rosy Starling )(Sturnus roseus) |
ब्रह्मिणी या कालासिर मैना (Brahminy Starling) (Sturnus pagodarum) |
जीवों की इस वैज्ञानिक नामावली को लिखने के कुछ आसान से नियम भी हैं. इनमें पहले शब्द के पहले अक्षर को 'कैपिटल' में लिखा जाता है और दूसरे शब्द का पहला अक्षर सामान्य छोटे रूप में. साथ ही छपे हुए गद्य के बीच किसी जीव का वैज्ञानिक नाम आने पर उसे तिरछी शैली या italics में लिखना ज़रूरी होता है. ये सारे नियम दुनिया भर में माने जाते हैं इसलिए किसी नाम में संशय की कोई गुंजाइश नहेीं रहती. दुनिया में जब भी किसी नए जीव का पता चलता है तो सबसे पहले ICZN इसका नाम जारी करती है जो सबको मान्य होता है.
मिसेज़ गोउल्ड शक्करखोरा (Mrs. Gould Sunbird)(Aethopyga gouldiae) |
इस कड़ी में सभी चित्रों के शीर्षक के साथ तुम्हें इन पक्षियों के वैज्ञानिक नाम भी मिलेंगे. लैटिन के इन मुश्किल शब्दों को देखकर घबराना नहीं! आने वाली कड़ियों में हम तुम्हें प्रमुख प्रजातियों के बारे में और कई बातें बतायेंगे.
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Rochak aur Gyanvardhak ! Inme khokar ham dhoondh sakte hain apne beete din...sawaalon ke din...jawaabon ke din...
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