Monday, April 14, 2014

दो: हमारे आसपास के कुछ परिचित और कुछ नए पक्षी

जंगली मैनाओं का जोड़ा: इसकी कलगी के ऊपर बालों पर गौर करो.  
पक्षियों को देखने और समझने के लिए सबसे पहले आओ अपने आस पास की दुनिया पर नज़र दौड़ायें. खिड़की से बाहर झांकते ही हमें बहुत से परिचित घरेलु पक्षी दिखाई दे जायेंगे. दोपहरी में 'कांव कांव' करता काला कव्वा, दहलीज़ पर दाना चुगती गौरैया, छज्जे पर 'गुटरगूं' करता कबूतर और पंखों से आवाज़ निकालकर उड़ जाती मैना. समय के साथ ये सारे पक्षी हमारे आस-पास जीना सीख गए हैं. हज़ारों साल पहले शायद ये जंगल के वासी रहे होंगे. लेकिन भोजन की तलाश इन्हें धीरे धीरे बस्तियों के करीब ले आई. और अब यही इनका घर बन गया है.   यहीं ये अपना भोजन तलाशते हैं, घोंसले बनाते हैं और रात में यहीं किसी ऊंचे सुरक्षित ठौर पर ये सो भी जाते हैं.

इन पक्षियों को तो तुम अच्छी तरह पहचानते होगे. लेकिन इनमें से हर पक्षी से मिलते जुलते इनके कुछ दूसरे रिश्तेदार भी हैं. इनमें से कुछ आज भी बस्ती से हटकर जंगल में रहते हैं, तो कुछ किसी विशेष आबोहवा में या पहाड़ों में पाए जाते हैं. जैसे अलग अलग जगहों पर रहने वाले मनुष्यों के नाक-नक्श और उनकी बनावट में अंतर होता है, वैसे ही पक्षियों के रिश्तेदार भी देखने में अपने घरेलू भाई-बहनों से थोड़े से भिन्न दिखाई देंगे. इनके स्वभाव में भी थोड़ा सा अंतर हो सकता है. आओ, सबसे पहले तुम्हें इन घरेलू पक्षियों के कुछ निकट और कुछ दूर दराज़ के रिश्तेदारों से मिलवायें.

कर्कश 'कांव' वाले कौवे को कौन नहीं जानता. मनष्य के साथ रहते रहते अब यह बड़े दुस्साहस के साथ भोजन या रोटी उठा ले जाता है. इसी का एक भाई बड़ी चोंच वाला 'पहाड़ी' कौवा भी है जो पूरा काला और आकर में घरेलु कौवे से कुछ बड़ा होता है. लेकिन स्वभाव से यह घरेलू कौवे जितना दुस्साहसी नहीं होता.

क्या सभी कौवे काले होते हैं? नहीं. ईरन और उसके आस पास के इलाकों में और अफ्रीका में काले-सफ़ेद कौवे मिलते हैं. देखने और स्वभाव में ये हमारे सामान्य कौवे जैसे ही होते हैं, सिर्फ इनका शरीर सफ़ेद और सिर तथा पंख काले होते हैं. 
ईरान का hooded crow कौवा
पहाड़ी इलाकों में एक बहुत बड़े आकर का जंगली कौवा भी मिलता है जिसे अंग्रेजी में raven कहते हैं. यह आकर में चील से भी बड़ा होता है. इसका चित्र हमें लद्दाख के सुदूर पहाड़ों में मिला.

लद्दाख का बड़ा कौवा Northern Raven
इसी का एक दूसरा भाई Punjab Raven है जो मैदानों में पाया जाता है. इसका यह चित्र जैसलमेर से लिया गया है.
Punjab Raven जैसलमेर में मृत चिंकारा का मांस खाते हुए
सुपरिचित घरेलू गौरैया हमारी दुनिया में हज़ारों साल से आती आई है. कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछले पच्चीस वर्षों में इसकी जनसँख्या में गिरावट आई है लेकिन इसका सही कारण अभी तक मालूम नहीं है.

घरेलू पक्षियों में गौरैया इसलिए भी अलग है क्योंकि इसमें मादा गौरैया और नर चीरता देखने में भिन्न होते हैं. हम आगे देखेंगे कि कई दूसरे पक्षियों में भी ऐसा होता है, हालाँकि कुछ पक्षियों में नर और मादा एक जैसे होते हैं. हिमालय के पहाड़ी इलाकों में मिलने वाली लाल गौरैया या 'रसेट' गौरैया Russet Sparrow सामान्य गौरैया से थोड़ी सी अलग होती है.
पहाड़ों पर मिलने वाली Russet Sparrow
अफ्रीका  के पास मेडागास्कर और कुछ दुसरे द्वीपों में जो गौरैया मिलती है उसे स्थानीय भाषा में 'मोडी' कहा जाता है. इसमें मादा बिलकुल हमारी गौरैया जैसी ही दिखती है लेकिन नर बिलकुल अलग लाल या पीले रंग का होता है.
मेडागास्कर की 'मोडी' का नर
दुनिया में गौरैया की और भी कई प्रजातियाँ हैं.

सामान्य कबूतर से तुम सब परिचित होगे. पहाड़ों पर इसकी कुछ दूसरी प्रजातियाँ मिलती हैं. लेकिन बस्तियों के पास बड़े बड़े पेड़ों की ऊंची डालों पर तुम्हें एक खूबसूरत हरा कबूतर 'हरियल' मिलेगा जिसके पैर पीले होते हैं और गला सामान्य कबूतर से कुछ मोटा होता है. 'हरियल' ज़मीन पर कम ही दिखेगा. यह अपना सारा समय पेड़ों पर बिताता है. बरगद के पेड़ पर लगने वाले लाल-लाल फल इसका प्रिय भोजन हैं.
बरगद के फल खाता हरियल. इसके पीले पैर देखो.
यह तो हुई दिन में दिखने वाले कुछ सामान्य पक्षियों की बात. लेकिन कुछ पक्षी ऐसे भी हैं जो दिन में सोते हैं और रात के अँधेरे में शिकार के लिए निकलते हैं. इनमें सबसे प्रमुख है उल्लू. हमारे देश में उल्लुओं की कई प्रजातियाँ मिलती हैं जिनके बारे में तुम्हें आगे बताएँगे. लेकिन उल्लुओं में सबसे परिचित और सब जगह पाया जाने वाला छोटा उल्लू है चित्तीदार उल्लू spotted owlet. इसके सर और पंखों पर चित्तियाँ होती हैं.
चित्तीदार उल्लुओं का जोड़ा
उल्लू की आँखें रात के अँधेरे में भी देख सकती हैं लेकिन दिन की रोशनी में ये आँखें चौंधियाने लगती हैं. शाम ढलने के बाद इसकी 'चिरुर्र-चिरुर्र' की आवाज़ तुमने ज़रूर सुनी होगी. सुबह तडके अक्सर यह कूटर के पास की किसी डाल पर बैठा दिखाई दे जायेगा. इसकी एक आदत यह भी है कि यह देखने वाले को एकटक घूरता चला जाता है और ऐसे में कभी कभी यह बूढ़ों की तरह अपना सिर भी हिलाता जाता है. शायद इसी आदत के कारण हिंदी में इसका एक नाम 'खूसट' भी है. लेकिन इसकी आँखों में बच्चों की सी मासूमियत देखी जा सकती है. कोटर से झांकते इस उल्लू की फोटो मैंने बहुत पहले खींची थी!
कोटर से झांकते चित्तीदार उल्लू की मासूम आँखें.
तो परिचित पक्षियों के बारे में इस बार इतना ही. अगली बार कुछ अन्य पक्षियों के बारे में.
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जितेन्द्र भाटिया

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1 comment:

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