Sunday, November 22, 2015

(भाग 4) नाम में क्या रक्खा है!

बच्चों की एक हिंदी विज्ञान पत्रिका के लिए मैं पक्षियों पर एक श्रृंखला कर रहा हूँ. मित्रों और बहुत से बच्चों का आग्रह था कि इसे 'ब्लॉग' का रूप भी दिया जाए. इसी की पूर्ति में प्रस्तुत है पक्षियों की अनोखी दुनिया की ताज़ा कड़ी जो शायद बच्चों के अलावा बड़ों को भी पसंद आये!

जितेन्द्र भाटिया

नाम में क्या रक्खा है?


तुम इस दुनिया में हर चीज़ को नाम से पहचानते हो न! लेकिन कक्षा में अगर एक ही नाम के दो सहपाठी हों तो?  तब कई बार हम पहचान के लिए एक मोहन को ‘मोटू’ और दूसरे को ‘लम्बू मोहन' कहकर पुकारते हैं. यानी उनके नाम से पहले हम एक विशेषण लगा देते हैं ताकि उनकी पहचान आसानी से हो जाए. 

टुइयाँ तोता (Plum Headed Parakeet ) (Pisttacula cyanocephala)  

बोलचाल की भाषा में पक्षियों का नामकरण भी इसी तरह उनके रंग या किसी और पहचान से किया जाता है. लाल सिर वाले तोते को अंग्रेज़ी में 'plum headed parakeet' कहते हैं क्योंकि इसके सिर का रंग लाल बेर या plum से मिलता जुलता होता है. लेकिन हमारे उत्तरी देहातों में इसी तोते को अपनी तीखी 'टिटियाने' वाली आवाज़ के कारण 'टुइयाँ' तोता कहा जाता है. तमिल में इसका नाम 'सेंथलाई किलि' या 'लाल सिर वाला तोता है. 

सर्दियों में हमारे देश में उत्तरी ठन्डे प्रदेशों से कई पक्षी आते हैं. इनमें से एक है काला सिर थिरथिरा या black redstart. यह पक्षी ज़मीन पर चलते चलते बीच बीच में थिरथिराता है और इसीलिये इसे 'थिरथिरा' कहा जाता है.       
    


काला सिर थिरथिरा (Black Redstart )(Phoenicurus orchruros)

लाल भौंह वाली बुलबुल के सिर पर सिपाहीनुमा टोपी बनी होती है--सो इसका नाम हुआ 'सिपाही बुलबुल’ या 'टोपीदार बुलबुल' ! अंग्रेजी में इसका नाम है Red Whiskered Bulbul.  


सिपाही या टोपीदार बुलबुल (Red  Whiskered Bulbul )(Pycnonotus jocusus

लेकिन तुमने देखा कि अलग अलग भाषाओं में तोते की तरह बुलबुल का नामकरण भी हमने अलग अलग गुणों से कर डाला. अंग्रेजी में उसका नाम उसकी लाल भौंह से हुआ तो हिंदी में हमने उसे कभी सिपाही टोपी तो कभी सिर्फ टोपी वाली बुलबुल कहकर पुकारा. तेलुगु भाषा में इसी बुलबुल को 'तुरहा पिगली पित्ता' (या तुर्रे वाली बुलबुल) कहा जाता है. बांग्ला भाषा में  कोई इसे 'सिपाही बुलबुली' कहता है तो कोई इसे तीखे नैन-नक्श के कारण 'चाइना बुलबुली' बुलाता है. यह बुलबुल दुनिया के विस्तृत प्रदेश में पायी जाती है. इनमें न जाने कितनी भाषाएँ होंगी जिनमें इसी बुलबुल के पता नहीं कितने नाम होंगे. तब इन सारे नामों से यह पता कैसे चले कि हम सब उसी टोपीदार बुलबुल की बात कर रहे हैं? 

नामकरण का यह संकट सिर्फ पक्षियों के साथ ही नहीं, बल्कि जानवरों, सांपों, कीड़ों, वनस्पतियों और स्वयं वनमानुष और मनुष्य, यानी हर जीवित प्राणी के नामों को लेकर आता है. अलग अलग भाषाओं और प्रदेशों में इनके अलग अलग नाम हैं. तब वैज्ञानिकों को लगा कि सभी जीवित प्राणियों के प्रचलित नामों के समानांतर उनका एक सर्व मान्य वैज्ञानिक नामकरण भी होना चाहिए जिसे सब लोग मानें और जिसमें फेरबदल की कोई गुंजाइश न हो. विभिन्न भाषाओं में जीवों के नामों के साथ यदि उस जीव का विज्ञानिक नाम भी हो तो सब आसानी से जान जाएंगे कि हम किस जीव या पक्षी की बात कर रहे हैं.

सोलहवीं शताब्दी के योरोप में ज्ञान  अध्ययन की प्रमुख भाषा लैटिन थी. इसी में सबसे पहले जीवों और वनस्पतियों के वैज्ञानिक नामकरण की शुरुआत हुई. लेकिन आरम्भ में इसमें कई मतभेद थे. जीवों के लिए लैटिन में पहली सर्व मान्य दो शब्दों वाली binomial नामावली पद्धति विकसित करने का श्रेय स्वीडन के डॉक्टर और वनस्पति शास्त्री कार्ल लिनेयस को जाता है.    

इन्होंने अट्ठारहवीं शताब्दी के मध्य में अपनी पुस्तकों ‘स्पीशीज प्लांटेरम’ और ‘सिस्टमा नेचुरे’ में पहली बार वनस्पतियों और जीवों के लिए दो शब्दों वाली नामावली का इस्तेमाल किया. इसी के आधार पर आगे चलकर ‘प्राणीशास्त्रीय नामकरण की अंतरराष्ट्रीय पद्धति’ (ICZN) बनी जो आज भी पक्षियों सहित सभी प्राणियों के वैज्ञानिक नामकरण का काम कर रही है. परंपरा के अनुसार यह शब्दावली लैटिन भाषा में हैं. इसी के  अंतर्गत मनुष्य जाति को वैज्ञानिक नाम मिला है –Homo sapiens !

जीवों के नामकरण की इस द्वि-शब्दी वैज्ञानिक को समझना बहुत आसान है. इसमें दो शब्द होते हैं. पहला शब्द पक्षी या जीव की विशिष्ट जाति को इंगित करता है और दूसरा उसके किसी ख़ास गुण को या भौगोलिक क्षेत्र को, जहां वह पाया जाता है. कई बार दूसरा शब्द उस जीव को पहली बार ढूंढने वाले व्यक्ति के नाम पर भी आधारित हो सकता है. हमारे देश के विख्यात पक्षीशास्त्री सलीम अली ने केरल में जिस संकटग्रस्त फल-फूल खाने वाले दुर्लभ चमगादड़ को ढूंढ निकाला था, उसका वैज्ञानिक नाम रक्खा गया है Latidens salimalii! इसमें पहला शब्द Latidens चमगादड़ों की जाति को दर्शाता है और दूसरा शब्द सलीम अली के पहले नाम से बना है.         


गुलाबी मैना (Rosy Starling )(Sturnus roseus)

सर्दियों में गुलाबी मैनाएं (Rosy Starlings) हज़ारों  संख्या में योरोप से भारत में आती हैं. इनका नीचे का भाग हल्का गुलाबी होता है. इनका वैज्ञानिक नाम है Sturnus roseus. इस नाम में पहला शब्द मैनाओं की प्रजाति को दर्शाता है और दूसरा शब्द उनके रंग  से जुड़ा है. इसी प्रजाति की एक और मैना--ब्राह्मिणी या काला सिर मैना (Brahminy Starling) हमारे यहां आम पायी जाती है. इसका नाम ब्रह्मणों जैसी सिर की चोटी और इसके निचले चन्दन भभूत जैसे रंग के कारण है.   

ब्रह्मिणी या कालासिर मैना (Brahminy Starling) (Sturnus pagodarum)

तुम देखोगे कि इन दोनों मैनाओं के वैज्ञानिक नाम में पहला शब्द एक ही है लेकिन दूसरा शब्द अलग है. इस तरह एक ही प्रजाति के दो पक्षियों को अलग अलग पहचानना अासान हो जाता है.

जीवों की इस वैज्ञानिक नामावली को लिखने के कुछ आसान से नियम भी हैं. इनमें  पहले शब्द के पहले अक्षर को 'कैपिटल' में लिखा जाता है और दूसरे शब्द का पहला अक्षर सामान्य छोटे रूप में. साथ ही छपे हुए गद्य के बीच किसी जीव का वैज्ञानिक नाम आने पर उसे तिरछी शैली या italics में लिखना ज़रूरी होता है. ये सारे नियम दुनिया भर में माने जाते हैं इसलिए किसी नाम में संशय की कोई गुंजाइश नहेीं रहती. दुनिया में जब भी किसी नए जीव का पता चलता है तो सबसे पहले ICZN  इसका नाम जारी करती है जो सबको मान्य होता है.   

मिसेज़ गोउल्ड शक्करखोरा (Mrs. Gould Sunbird)(Aethopyga gouldiae)  

दुनिया में शक्करखोरों (sunbirds) की कई प्रजातियां हैं और इनमें एक बेहद सुन्दर प्रजाति है मिसेज़ गोउल्ड शक्करखोरा जो पूर्वी भारत और आसपास के कई देशों में पाया जाता है. काफी समय पहले आयरलैंड के पक्षीशास्त्री निकोलस विगोर्स ने इसे सबसे पहले ढूँढा था और चित्रकार जॉन गोउल्ड ने इनके पहले चित्र बनाये थे (तब कैमरा तो था नहीं!) गोल्ड के आग्रह पर निकोलस विगोर्स ने इसका नाम चित्रकार की पत्नी पर रख दिया था और इस तरह सामान्य और वैज्ञानिक शब्दावली दोनों में ही इसे मिसेज़ गोउल्ड शक्करखोरा नाम से जाना जाता है!

इस कड़ी में सभी चित्रों के शीर्षक के साथ तुम्हें इन पक्षियों के वैज्ञानिक नाम भी मिलेंगे. लैटिन के इन मुश्किल शब्दों को देखकर घबराना नहीं! आने वाली कड़ियों में हम तुम्हें प्रमुख प्रजातियों के बारे में और कई बातें बतायेंगे.  

  
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