Monday, December 14, 2020

***सतरंगी दुनिया में प्रवेश***

बच्चों की एक हिंदी पत्रिका के लिए मैं पक्षियों पर एक श्रृंखला कर रहा हूँ. मित्रों और बहुत से बच्चों का आग्रह था कि इसे 'ब्लॉग' का रूप भी दिया जाए. इसी की पूर्ति में प्रस्तुत है पक्षियों की अनोखी दुनिया जो शायद बच्चों के अलावा बड़ों को भी पसंद आये!
जितेन्द्र भाटिया

एक : सतरंगी दुनिया में प्रवेश

बर्ड आइलैंड, seychelles के आकाश में सलेटी कुरारियां
sooty terns in the sky at Bird Island, Seychelles 

एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक फुदकती गौरैया या आसमान में ऊंचे चक्कर काटती चील को देखकर किसका मन नहीं चाहता कि काश, हम भी इन पखेरुओं की तरह स्वच्छंद आकाश में जहाँ चाहे वहां उड़ सकते! पक्षियों की उड़ान से प्रेरणा लेकर ही इंसान ने कई साल पहले हवाई जहाज़ का आविष्कार किया था. गरुड़ और शाहबाज़ अपने बड़े-बड़े डैनों के सहारे कैसे ज़मीन से उठकर हवा में उड़ जाते हैं. आज भी हमारे विज्ञानं की एक बड़ी शाखा हवाई ज़हाजों के डिजाईन और उनमें इस्तेमाल होने वाली विशेष धातुओं पर काम करती है. लेकिन इतने विकास के बाद भी हमारा विज्ञान जितना जानता है, वह प्रकृति के लाखों वर्ष के विकास के आगे कुछ भी नहीं है. दुनिया का छोटे से छोटा पक्षी भी अपने प्राकृतिक पंखों के सहारे कितनी आसानी से हवा में उड़ सकता है. जबकि हमारे हवाईजहाजों को उड़ने के लिए हवाई पट्टी, कई सारे लोगों और बहुत सारे तामझाम  की ज़रुरत पड़ती है.

पहले हवाई जहाज़ का नक्शा देती कुरजा पक्षियों की उड़ान
Demoiselle Cranes Providing the first Prototypes for Planes

पक्षियों के बारे में जो बात सबसे अधिक रोमांचित और  अचंभे में डालती है, वह है उनका हवा में जहां चाहे वहाँ उड़ सकना। लेकिन हमें पता नहीं होगा कि पंख लगाकर फुर्रसे उड़ जाने वाले पक्षियों का आसमान और उनका संसार कई तरह की चुनौतियों से भरा है। आकाश में, ज़मीन पर या जल में विचरने वाले ये पक्षी अपने पंखों से लंबी दूरियाँ तय कर भोजन तलाशते हैं। अंडे और बच्चे देते हैं और दूसरे मांस-भक्षी पक्षियों या जानवरों से अपनी जान भी बचाते हैं। प्रकृति के विधान में पेड़ों, पक्षियों, जानवरों और इनके साथ साथ इंसान— सबकी अपनी अपनी जगह है। सबका जीवन एक दूसरे के साथ गुंथा हुआ है और जाने अनजाने में सभी एक दूसरे पर निर्भर भी हैं। इनमें से किसी एक के न रहने से प्रकृति का लाखों वर्षों से साधा हुआ संतुलन बिगड़ सकता है। जब हम अकारण एक पेड़ काटते हैं तो इससे सिर्फ जीवन देने वाली हरियाली ही नष्ट नहीं होती। बल्कि इससे उस पेड़ पर घोंसला बनाने वाले पक्षी, गिलहरियाँ और उन पक्षियों का भोजन बनने वाले कीट-पतंगे, सभी बेघर हो जाते हैं। पेड़ों के कटने का प्रभाव आबोहवा पर भी पड़ता है।    


पेड़ों पर बैठे noddy पक्षी
Noddy birds on a tree
पृथ्वी पर इतने सारे पेड़-पौधों और जीवों-पक्षियों का मिल जुलकर एक साथ रहना प्रकृति के लाखों वर्षों के विकास का नतीजा है. यहाँ हर एक के लिए पर्याप्त जगह और सबके लिए अपना-अपना विशिष्ट भोजन मौजूद है. इंसान का भी सदियों से इन सारे पेड़-पौधों, पक्षियों और जीवों से गहरा रिश्ता रहा है और हमारी अधिकांश जरूरतें भी इनसे ही पूरी होती हैं।



वक्र चोंच से फूलों का मधु खींचता शक्करखोरा
little spiderhunter sucking nectar from flowers

प्रकृति के विधान में कई बार एक जीव दूसरे जीव का भोजन भी बनता है। जंगल में बाघ  हरिणों से अपना पेट भरता है, आकाश में गरुड़ छोटे पक्षियों का शिकार करता है और पानी  में बगुला मछलियाँ मारकर खाता है।       

मांस और मछली खाने वाला मनुष्य भी इस नियम का अपवाद नहीं है। प्रकृति में सभी के लिए पर्याप्त जगह और भोजन है।



रात में शिकार करने वाला बगुला
night heron catching fish
दूसरे जीवों की तरह पक्षी भी सदियों से मनुष्य के साथ जीते और रहते आए हैं। वे उसके जीवन का ज़रूरी हिस्सा भी हैं। 

हमारे लिए इन उड़ने वाले साथियों के संसार को समझना और उन्हें पहचानना दिलचस्प होगा। तो आओ, इस शृंखला के जरिये हम इन उड़ने वाले परिंदों के बारे मेँ कुछ नयी बातें जानें और समझें। पक्षियों की यह दुनिया बहुत लुभावनी, चमत्कारी और कभी कभी अचंभे में डालने वाली भी लग सकती है।
हममें से कोई भी, बहुत आसानी से इन पक्षियों का दोस्त बन सकता है। लेकिन बहुत धीरे धीरे, बिना कोई आवाज़ किए, थोड़े से फासले से, ताकि हमारी आहट से ये पक्षी कहीं डर कर उड़ न जाएँ।  


कितने पक्षी?

इस दुनिया में कितने पक्षी होंगे, इसका अंदाज़ लगाना मुश्किल है, लेकिन फिर भी कहा जाता है कि इनकी संख्या हम मनुष्यों से कोई पचास गुना अधिक होगी, यानी कुल साठ अरब या इससे भी अधिक। ये पक्षी दुनिया के हर कोने मेँ हर तरह के मौसम और हर प्रकार की आबोहवा मेँ पाये जाते हैंप्रकृति ने हर पक्षी को अपने मौसम या अपनी आबोहवा मेँ रह सकने और अपने खास ढंग मेँ जीने के लिए उपयुक्त शरीर, पंख, चोंच और पंजे दिए हैं.

प्रकृति ने इन्हें अपनी रक्षा और शत्रुओं से बचने के उपाय भी दिए हैं.

इसी प्राकृतिक कवच के सहारे ये पक्षी हज़ारों साल से हमारे बीच में हैं लेकिन यह भी सच है कि अपने आपको बचा न पाने की इस लड़ाई में कई प्रजातियाँ विलुप्त भी हो गयी. बहुत सारे प्रजातियाँ मनुष्य की पर्यावरण से लड़ाई में भी ख़त्म हो गयी.

जो जातियां अभी हैं, उन्हें बचाने कि ज़िम्मेदारी हम सबकी है. 
उकाब के पंजे मज़बूत होते हैं जिनमें शिकार को पकड़ कर वह उड़ सकता है
eagle has strong talons to lift its prey

यही नहीं, प्रकृति के विकास में हर पक्षी को अपना विशिष्ट भोजन और उड़ने के लिये अलग-अलग ऊँचाइयाँ मिली हैं, ताकि सभी पक्षी आराम  से अपना पेट भर सकें।

पानी में डुबकी लगाने वाली लालसिर बत्तख के पँखों पर पानी नहीं ठहरता



कठफोड़वा अपनी लम्बी चोंच के सहारे सूखी डालियों से कीड़े निकालकर खाता है
woodpecker uses its long beak to pull out insects from the dried bark
 

हमारे समूची दुनिया में पक्षियों की कोई दस हज़ार प्रजातियाँ होंगी. इनमें से कोई 1200 प्रजातियाँ हमारे देश में पायी जाती हैं. हमारे अधिकांश मैदानी इलाकों मेँ पक्षियों की कोई 300 अलग अलग प्रजातियाँ मिल जाएंगी। तुम कहीं भी रहते हो, अपने इर्द गिर्द पक्षियों की कम से कम 100 अलग अलग प्रजातियों को थोड़ी सी कोशिश से ढूंढ ही सकते हो। अगली बार हम अपने पड़ोस के कुछ परिचित और कुछ नए पक्षियों से तुम्हारी पहचान और दोस्ती करवाएँगे।
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--जितेन्द्र भाटिया
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