Sunday, July 24, 2016

(Part 7) पंछी ऐसे आते हैं....(Some More Stories of Migration of Birds)

खीचन  में कुरजा पक्षियों का समूह 

बच्चों की एक हिंदी विज्ञान पत्रिका के लिए मैं पक्षियों पर एक श्रृंखला कर रहा हूँ. मित्रों और बहुत से बच्चों का आग्रह था कि इसे 'ब्लॉग' का रूप भी दिया जाए. इसी की पूर्ति में प्रस्तुत है पक्षियों की अनोखी दुनिया की यह सातवीं कड़ी जो शायद बच्चों के अलावा बड़ों को भी पसंद आये!

जितेन्द्र भाटिया
पंछी ऐसे आते हैं....... पंछी ऐसे जाते हैं...... 

यह तो हम तुम्हें बता ही चुके हैं कि भोजन और प्रजनन के लिए बहुत सारे पक्षी हर साल लम्बी यात्राएं करते हैं. लेकिन लम्बी दूरियों तक का प्रवास करने वाले कुछ पक्षियों के कारनामे सुनकर तुम आश्चर्य में पड़ जाओगे !


राजस्थान में जोधपुर से कुछ दूरी पर फलौदी शहर के पास एक छोटा सा गांव  है खीचन, जो तपती गर्मियों में लगभग उजाड़ हो जाता है. लेकिन बरसातों के बाद सितम्बर का अंत होते-होते यहाँ हज़ारों की संख्या में सुदूर मंगोलिया से कुरजाएं (demoiselle cranes) उड़कर आनी शुरू हो जाती हैं.


उड़कर आती कुरजाएं (demoiselle  cranes)(Grus virgo)   


फिर ये लगभग छह महीनों तक यहीं रहती हैं और गाँव वाले बहुत प्यार के साथ इन सारे पक्षियों के लिए भोजन का इंतज़ाम करते हैं. हर शाम लगभग एक टन ज्वार चुग्गाघर के मैदान में इन पक्षियों के लिए फैलाया जाता है. 


सुबह के समय चुग्गाघर में कुरजाएं 

,दुनिया भर से यहां सैलानी इन सुन्दर पक्षियों को देखने के लिए आते हैं, जिनकी संख्या सितम्बर के अंत तक दस हज़ार से भी अधिक हो जाती है.  गाँव वाले बहुत जतन से छह महीनों तक इन पक्षियों की देखभाल करते हैं. फिर मार्च के अंत तक ये पक्षी फिर से उड़कर अपने सुदूर देश मंगोलिया में लौट जाते हैं. 

खीचन में उड़कर आती कुरजाएं 

मज़े की बात यह है कि कुरजा पक्षी अपने अंडे और बच्चे  सुदूर देश मंगोलिया में ही देता है. 

तुम पूछ सकते हो कि इतने सफर में भी ये पक्षी कभी भटकते नहीं? इतनी दूर से वे नियत समय पर हर साल गाँव कैसे पहुँच जाते हैं?  और यह लंबा सफर वे एक बार में ही पूरा करते हैं या रास्ते में कहीं रुकते भी हैं? और इस यात्रा में क्या बच्चे भी उनके साथ होते हैं? रास्ते में इन्हें भोजन कैसे मिलता है? और रास्ते में क्या इन्हें खतरों का भी सामना करना पड़ता है? पक्षियों के लम्बी दूरी के प्रवास से जुड़े ये सवाल हमें ही नहीं, दुनिया भर के वैज्ञानिकों को भी अचम्भे में डालते रहे हैं. और इनमें से कुछ के जवाब तो उन्हें पक्के तौर पर आज भी मालूम नहीं हैं.

छोटे पक्षी के पैर  में छल्ला लगाता वैज्ञानिक (चित्र  सौजन्य Julio Reis)  


यूं तो पक्षियों के इस प्रवास या पव्रजन (migration) की जानकारी  मनुष्य को बहुत पहले से है.  लेकिन उड़ने के बाद पक्षी किस रास्ते से कहाँ जाते हैं, यह पता लगाना मुश्किल था. फिर कुछ  वैज्ञानिकों ने पहचान के लिए पक्षियों के पैरों में छल्ला बांधकर उनकी पहचान करने और उनकी यात्राओं के रास्तों के बारे में पता लगाने की कोशिश की. आधुनिक समय में उपग्रह या satellite के ज़रिये पक्षियों के आकाश पथों का पता लगाना बहुत आसान हो गया है. जैसे अब पता चला है कि कुरजाएं पूर्व से ही नहीं, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के रास्ते भी हमारे देश में आती हैं. बाज़ (falcon ) जाति के कई पक्षी मंगोलिया/ चीन से थाईलैंड और फिर हमारे उत्तर पूर्वी राज्यों (नगालैंड, असम) से होते हुए हमारे देश से गुज़रकर आगे अफ्रीका चले जाते हैं. कई उकाब सीधे हिमालय पार कर भी हमारे देश में आते हैं. 

लालसिर बत्तख का जोड़ा  red crested pochard (Netta rufina)- यह दक्षिण योरोप से पाकिस्तान के रास्ते सर्दियाँ बिताने हमारे यहां आती है. यह चित्र दार्जीलिंग के पास की एक झील का है.  


पव्रजन के दौरान पक्षी अलग अलग ऊंचाइयों पर उड़कर अपना सफर तय करते हैं. एवेरेस्ट के एक अभियान में चोटी पर छोटे गुदेरे (Bar Tailed Godwit) और सींखपर बत्तख (Northern Pintail) की अस्थियाँ मिली, यानी ये पक्षी वहां 5000 मीटर की ऊंचाई पर उड़ रहे थे.  

सींखपर बत्तख (Anas acuta) का जोड़ा दक्षिणी भारत में   


सरपट्टी सवन (Bar Headed Goose) हिमालय पार करते समय इससे भी अधिक 6500 मीटर  की  ऊंचाई पर उड़ती है. लेकिन अधिकाँश पक्षी प्रवास की यात्राओं में काफी नीचे 150 से 500 मीटर तक की ऊंचाइयों पर उड़ान भरते हैं. बाज़ और उक़ाब अक्सर अपने काफिलों में गोल गोल उड़ते हुए आगे बढ़ते हैं. अपनी यात्रा को आसान बनाने के लिए पक्षी अक्सर पहाड़ों के बीच, नदियों के ऊपर से या समुद्रतट के किनारे आकाश मार्ग बनाते हैं ताकि उन्हें अनुकूल हवा से मदद मिल सके.

पव्रजन यात्रा करने वाले अधिकाँश पक्षी एक ही आकाश मार्ग का इस्तेमाल करते हैं जहाँ एक के बाद एक, अलग अलग पक्षियों के काफिले आकाश से गुज़रते हैं. 

प्रसिद्ध पर्यावरण विशेषज्ञ जॉर्ज मोंटागु के नाम से जाने वाला मोंटागु गिरगिटमार  Montagu Harrier (Circus pygargus)  योरोप से आकर यहां सर्दियां बिताता है 

इस नज़ारे को देखने के लिए वैज्ञानिक और पक्षी प्रेमी अक्सर अपनी दूरबीनें और कैमरे लेकर पहुँचते हैं. 

रैप्टर हिल थाईलैंड में उकाब की प्रतिमा 


तुर्की के पास बोस्फोरस की खाड़ी, स्वीडन के दक्षिण में स्थित फॉलस्टर्बो और थाईलैंड में रैप्टर हिल ऐसे ही कुछ जाने-माने स्थल हैं जहां से हर साल लाखों की संख्या में पक्षी आकाश के रास्ते गुज़रते हैं. अक्सर यहां वैज्ञानिक पहचान के लिए कुछ पक्षियों के पैरों में इलेक्ट्रॉनिक छल्ले बांधकर इन्हें फिर से आकाश में छोड़ देते हैं ताकि इंसान को पक्षियों की इन हवाई यात्राओं को समझने में मदद मिल सके.

तुमने कई बार देखा होगा कि हवा में उड़ते पक्षियों के समूह कई बार अंग्रेजी के V अक्षर बनाकर उड़ते नज़र आते हैं. ऐसा वे हवा को काटकर ऊर्जा बचाने के लिए करते हैं. वैज्ञानिकों ने पाया है कि V के आकार में उड़ती बत्तखें किसी अकेली बत्तख के मुकाबले दस से बीस प्रतिशत ऊर्जा बचाकर लगभग 5 किलोमीटर प्रति घंटा अधिक तेज़ उड़ पाती है. 

सर्दियों में तालाबों/नदियों पर अक्सर दिखाई देने वाला जीरा बाटन little ring plover (Charadrius dubius) जिसकी आँखों का पीला घेरा प्रजननशील नर की निशानी है. यह अपना घोंसला योरोप में बनता है 

प्रजनन के बाद जब बच्चे बड़े होकर पूरी तरह उड़ान भरने लगते हैं तो इन्हें भी इन लम्बी यात्राओं में शामिल कर लिया जाता है. लेकिन देखा गया है कि उड़ते पक्षियों के अधिकाँश समूहों में बच्चे सबसे आगे उड़ते हैं, ताकि वे लगातार बड़ों की निगाहों में बने रहें! 

आकाशमार्ग का यह लंबा सफर कुछ पक्षी तो एक बार में ही पूरा कर लेते हैं तो कुछ रुक रूक कर कई दिनों या कुछ सप्ताहों में  यह रास्ता तय करते हैं. 

बिना रुके एक बार में सबसे लंबी उड़ान भरने का विश्व रिकॉर्ड छोटे गुदरा के नाम है. यह पक्षी अलास्का से उड़कर न्यूज़ीलैंड के अपने प्रजनन स्थलों तक का 11000 किलोमीटर का सफर एक बार में पूरा कर डालता है. कहा जाता है कि इस लम्बी उड़ान के दौरान उसके शरीर का वजन आधे से भी काम रह जाता है.

दुनिया के सबसे लम्बे उड़ाकू पक्षी का बड़ा भाई बड़ा गुदेरा black tailed godwit (Limosa limosa)    

 इससे भी आश्चर्य उड़ान आर्कटिक कुकरी (arctic  tern) की है जो आर्कटिक के अपने प्रजनन स्थलों से पृथ्वी  के दूसरे छोर अंटार्कटिका तक का लम्बा सफर हर साल तय करती है. कुछ वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका में पहचान के लिए  कुछ कुकरियों के पैरों में छल्ले बांधे और फिर दो तीन दिन हवाई जहाज़ों में बैठकर आर्कटिक आए. उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उन्होंने पाया कि  वे पक्षी उनसे पहले ही वहाँ पहुँच चुके थे!

लेकिन कम ऊंचाई पर उड़ने वाले अधिकाँश पक्षी  सीधे सफर करने की जगह बीच बीच में रूककर विश्राम करते और भोजन तलाशते हैं. कई बार यह विश्राम उनके लिए खतरे का कारण भी बन जाता है. पव्रजन के दौरान पक्षियों पर आने वाली विपदाओं  की कुछ और कहानियां अगली बार!

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