Monday, December 14, 2020

***सतरंगी दुनिया में प्रवेश***

बच्चों की एक हिंदी पत्रिका के लिए मैं पक्षियों पर एक श्रृंखला कर रहा हूँ. मित्रों और बहुत से बच्चों का आग्रह था कि इसे 'ब्लॉग' का रूप भी दिया जाए. इसी की पूर्ति में प्रस्तुत है पक्षियों की अनोखी दुनिया जो शायद बच्चों के अलावा बड़ों को भी पसंद आये!
जितेन्द्र भाटिया

एक : सतरंगी दुनिया में प्रवेश

बर्ड आइलैंड, seychelles के आकाश में सलेटी कुरारियां
sooty terns in the sky at Bird Island, Seychelles 

एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक फुदकती गौरैया या आसमान में ऊंचे चक्कर काटती चील को देखकर किसका मन नहीं चाहता कि काश, हम भी इन पखेरुओं की तरह स्वच्छंद आकाश में जहाँ चाहे वहां उड़ सकते! पक्षियों की उड़ान से प्रेरणा लेकर ही इंसान ने कई साल पहले हवाई जहाज़ का आविष्कार किया था. गरुड़ और शाहबाज़ अपने बड़े-बड़े डैनों के सहारे कैसे ज़मीन से उठकर हवा में उड़ जाते हैं. आज भी हमारे विज्ञानं की एक बड़ी शाखा हवाई ज़हाजों के डिजाईन और उनमें इस्तेमाल होने वाली विशेष धातुओं पर काम करती है. लेकिन इतने विकास के बाद भी हमारा विज्ञान जितना जानता है, वह प्रकृति के लाखों वर्ष के विकास के आगे कुछ भी नहीं है. दुनिया का छोटे से छोटा पक्षी भी अपने प्राकृतिक पंखों के सहारे कितनी आसानी से हवा में उड़ सकता है. जबकि हमारे हवाईजहाजों को उड़ने के लिए हवाई पट्टी, कई सारे लोगों और बहुत सारे तामझाम  की ज़रुरत पड़ती है.

पहले हवाई जहाज़ का नक्शा देती कुरजा पक्षियों की उड़ान
Demoiselle Cranes Providing the first Prototypes for Planes

पक्षियों के बारे में जो बात सबसे अधिक रोमांचित और  अचंभे में डालती है, वह है उनका हवा में जहां चाहे वहाँ उड़ सकना। लेकिन हमें पता नहीं होगा कि पंख लगाकर फुर्रसे उड़ जाने वाले पक्षियों का आसमान और उनका संसार कई तरह की चुनौतियों से भरा है। आकाश में, ज़मीन पर या जल में विचरने वाले ये पक्षी अपने पंखों से लंबी दूरियाँ तय कर भोजन तलाशते हैं। अंडे और बच्चे देते हैं और दूसरे मांस-भक्षी पक्षियों या जानवरों से अपनी जान भी बचाते हैं। प्रकृति के विधान में पेड़ों, पक्षियों, जानवरों और इनके साथ साथ इंसान— सबकी अपनी अपनी जगह है। सबका जीवन एक दूसरे के साथ गुंथा हुआ है और जाने अनजाने में सभी एक दूसरे पर निर्भर भी हैं। इनमें से किसी एक के न रहने से प्रकृति का लाखों वर्षों से साधा हुआ संतुलन बिगड़ सकता है। जब हम अकारण एक पेड़ काटते हैं तो इससे सिर्फ जीवन देने वाली हरियाली ही नष्ट नहीं होती। बल्कि इससे उस पेड़ पर घोंसला बनाने वाले पक्षी, गिलहरियाँ और उन पक्षियों का भोजन बनने वाले कीट-पतंगे, सभी बेघर हो जाते हैं। पेड़ों के कटने का प्रभाव आबोहवा पर भी पड़ता है।    


पेड़ों पर बैठे noddy पक्षी
Noddy birds on a tree
पृथ्वी पर इतने सारे पेड़-पौधों और जीवों-पक्षियों का मिल जुलकर एक साथ रहना प्रकृति के लाखों वर्षों के विकास का नतीजा है. यहाँ हर एक के लिए पर्याप्त जगह और सबके लिए अपना-अपना विशिष्ट भोजन मौजूद है. इंसान का भी सदियों से इन सारे पेड़-पौधों, पक्षियों और जीवों से गहरा रिश्ता रहा है और हमारी अधिकांश जरूरतें भी इनसे ही पूरी होती हैं।



वक्र चोंच से फूलों का मधु खींचता शक्करखोरा
little spiderhunter sucking nectar from flowers

प्रकृति के विधान में कई बार एक जीव दूसरे जीव का भोजन भी बनता है। जंगल में बाघ  हरिणों से अपना पेट भरता है, आकाश में गरुड़ छोटे पक्षियों का शिकार करता है और पानी  में बगुला मछलियाँ मारकर खाता है।       

मांस और मछली खाने वाला मनुष्य भी इस नियम का अपवाद नहीं है। प्रकृति में सभी के लिए पर्याप्त जगह और भोजन है।



रात में शिकार करने वाला बगुला
night heron catching fish
दूसरे जीवों की तरह पक्षी भी सदियों से मनुष्य के साथ जीते और रहते आए हैं। वे उसके जीवन का ज़रूरी हिस्सा भी हैं। 

हमारे लिए इन उड़ने वाले साथियों के संसार को समझना और उन्हें पहचानना दिलचस्प होगा। तो आओ, इस शृंखला के जरिये हम इन उड़ने वाले परिंदों के बारे मेँ कुछ नयी बातें जानें और समझें। पक्षियों की यह दुनिया बहुत लुभावनी, चमत्कारी और कभी कभी अचंभे में डालने वाली भी लग सकती है।
हममें से कोई भी, बहुत आसानी से इन पक्षियों का दोस्त बन सकता है। लेकिन बहुत धीरे धीरे, बिना कोई आवाज़ किए, थोड़े से फासले से, ताकि हमारी आहट से ये पक्षी कहीं डर कर उड़ न जाएँ।  


कितने पक्षी?

इस दुनिया में कितने पक्षी होंगे, इसका अंदाज़ लगाना मुश्किल है, लेकिन फिर भी कहा जाता है कि इनकी संख्या हम मनुष्यों से कोई पचास गुना अधिक होगी, यानी कुल साठ अरब या इससे भी अधिक। ये पक्षी दुनिया के हर कोने मेँ हर तरह के मौसम और हर प्रकार की आबोहवा मेँ पाये जाते हैंप्रकृति ने हर पक्षी को अपने मौसम या अपनी आबोहवा मेँ रह सकने और अपने खास ढंग मेँ जीने के लिए उपयुक्त शरीर, पंख, चोंच और पंजे दिए हैं.

प्रकृति ने इन्हें अपनी रक्षा और शत्रुओं से बचने के उपाय भी दिए हैं.

इसी प्राकृतिक कवच के सहारे ये पक्षी हज़ारों साल से हमारे बीच में हैं लेकिन यह भी सच है कि अपने आपको बचा न पाने की इस लड़ाई में कई प्रजातियाँ विलुप्त भी हो गयी. बहुत सारे प्रजातियाँ मनुष्य की पर्यावरण से लड़ाई में भी ख़त्म हो गयी.

जो जातियां अभी हैं, उन्हें बचाने कि ज़िम्मेदारी हम सबकी है. 
उकाब के पंजे मज़बूत होते हैं जिनमें शिकार को पकड़ कर वह उड़ सकता है
eagle has strong talons to lift its prey

यही नहीं, प्रकृति के विकास में हर पक्षी को अपना विशिष्ट भोजन और उड़ने के लिये अलग-अलग ऊँचाइयाँ मिली हैं, ताकि सभी पक्षी आराम  से अपना पेट भर सकें।

पानी में डुबकी लगाने वाली लालसिर बत्तख के पँखों पर पानी नहीं ठहरता



कठफोड़वा अपनी लम्बी चोंच के सहारे सूखी डालियों से कीड़े निकालकर खाता है
woodpecker uses its long beak to pull out insects from the dried bark
 

हमारे समूची दुनिया में पक्षियों की कोई दस हज़ार प्रजातियाँ होंगी. इनमें से कोई 1200 प्रजातियाँ हमारे देश में पायी जाती हैं. हमारे अधिकांश मैदानी इलाकों मेँ पक्षियों की कोई 300 अलग अलग प्रजातियाँ मिल जाएंगी। तुम कहीं भी रहते हो, अपने इर्द गिर्द पक्षियों की कम से कम 100 अलग अलग प्रजातियों को थोड़ी सी कोशिश से ढूंढ ही सकते हो। अगली बार हम अपने पड़ोस के कुछ परिचित और कुछ नए पक्षियों से तुम्हारी पहचान और दोस्ती करवाएँगे।
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--जितेन्द्र भाटिया
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Tuesday, May 7, 2019

(Part 12) देश-विदेश की सतरंगी मैनाएँ (Colourful Mynas & Starlings)


पिछली  कड़ी में हमने  तुम्हें  अपने  आस पास दिखने  वाली  परिचित  मैनाओं  के बारे में बताया था.  आओ इस श्रृंखला  की  बारहवीं  कड़ी  में  इस बार  तुम्हें  मिलवायें  देश विदेश की  अनोखी  मैनाओं  से, जिनमें से कुछ के अनोखे चमकदार रंग  बस  देखते  ही बनते  हैं! 

जितेन्द्र भाटिया 


देश विदेश की सतरंगी मैनाएँ (Colourful Mynas & Starlings)


पिछली बार हमने तुम्हें अपने आस पास दिखने वाली परिचित मैनाओं के बारे में बताया था. मनुष्य के साथ रहते रहते ये मैनाएँ बहुत दबंग भाव से सिर उठाकर चलना सीख गयी हैं. इस बार तुम्हें मिलवाते हैं अपने देश की जंगल में रहने वाली कुछ दूसरी मैनाओं और साथ ही विदेश की कुछ दूसरी सुन्दर मैनाओं से!



हमारे देश के छोटे पहाड़ों और जंगलों में पहाड़ी मैना (Hill Myna) की  तीन किस्में दक्षिणी और पूर्वी इलाकों में मिलती हैं. ये सभी मैनाएँ सदाबहार जंगलों के पेड़ों पर फलों, फूलों, बीजों और कीड़ों से अपना पेट भरती हैं. शहरी मैनाओं के मुकाबले ये जोड़ों या छोटे झुंडों में रहती हैं और गले से  ये कई तरह की आवाजें निकाल सकती हैं, जिसकी वजह से गाँव में कई लोग इन्हें पिंजरों में बंद कर भी रखते हैं. ये ज़्यादातर पेड़ों की सूराखों और खोहों में अपने घोंसले बनाती हैं और पेड़ की डालों पर ही अपना अधिकाँश समय गुज़ारती हैं. 


अंडमन द्वीप में पहाड़ी मैना Hill Myna (Gracula religiosa)


देश के उत्तरी भाग में पहाड़ी मैनाएँ नहीं मिलती. पश्चिमी घाट में गोवा, पश्चिमी कर्नाटक और केरल में पायी जाने वाली पश्चिमी पहाड़ी मैना (Lesser Hill Maina) आकार में कुछ छोटी होती है और इसकी गर्दन और आँखों के नीचे दो अलग पीले हिस्से दिखाई देते हैं. यह अक्सर पेड़ों के मौसमी फूलों और फलों के आसपास भोजन करती मिल जायेगी. 


कर्नाटक के दान्डेली में फूलों का रस लेती पश्चिमी पहाड़ी मैना Lesser Hill Myna (Glacula indica)

पश्चिमी प्रदेश के जंगलों और मैदानों में  एक और पवई मैना (Chestnut Tailed Starling) साल के कुछ महीनों में आम दिखाई देती है. मैदानी इलाकों के लिए यह यात्री प्रवासी या passing migrant है. सितम्बर-अक्टूबर के महीनों में यह दक्षिण की ओर जाती हुई मैदानों में मिलती है और फरवरी-मार्च में इसे दुबारा उत्तर पूर्व की ओर जाते हुए देखा जा सकता है. पवई मैना को अब तीन अलग अलग प्रजातियों में बांटा गया है. पश्चिमी इलाके के मैदानों और मुंबई के इलाकों में दिखने वाली पवई मैना अक्सर झुंडों में मिलती है.

पवई मैना Chestnut Tailed Starling (Sturnia Malabarica)

मलाबार सफ़ेद सिर मैना Malabar Starling (Sturnia blithii)

गोआ और इससे दक्षिण में जो पवई मैना मिलती है, उसका सिर सफ़ेद होता है जिसके कारण इसे मलाबार की सफ़ेद सिर वाली मैना या Malabar Starling कहा जाता है. इन दोनों मैनाओं की चोंच का सिरा तुम्हें अखरोटी भूरे लाल रंग का दिखाई देगा.

इसी मैना से मिलती जुलती एक और अलग किस्म सिर्फ अंडमान  और निकोबार द्वीप समूह में मिलती है. इसे सिर्फ सफ़ेद सिर वाली मैना या White Headed Starling कहा जाता है.

अंडमन की सफ़ेद सिर मैना White Headed Starling (Sturnus erythropygia)

प्रदेश के बदलने के साथ साथ इन मैनाओं के रंग-रूप में परिवर्तन मिलेगा और कई बार इन्हें अलग अलग प्रजातियों की जगह उसी जाति के अन्य गोत्र या कि sub-species माना जाता है और उनके DNA विश्लेषण के आधार पर कई बार उन्हें अलग जाति भी बताया जाता है. जैसे श्रीलंका में मिलने वाली सफ़ेद चेहरे वाली मैना Srilanka White Faced Starling हमारी पवई मैना से एक अलग प्रजाति है. 



हमारी पूर्वी सीमाओं से आगे मयनमार और थाईलैंड, लाओस आदि में एक अन्य गुलाबी छाती मैना (Vinous Breasted Starling) के झुण्ड बहुतायत में मिलेंगे. कहा जाता है कि इजराइल में एक पार्क से छूटी कुछ गुलाबी छाती मैनाओं की संख्या इस तेज़ी से बढ़ी की उसे रोकने के उपाय करना ज़रूरी हो गया लेकिन ये सभी कोशिशें बेकार रही. 


मयनमार और अन्य दक्षिण पूर्व देशों की गुलाबी छाती मैना Vinous Breasted Starling (Acridotheres leucolephalus)


मयनमार में काले कालर वाली मैना Black Collared Starling (Gracupica nigricollis)







दक्षिण पूर्व एशिया और चीन की एक और परिचित मैना है काले कालर वाली मैना Black Collared Starling जो हमारे देश में नहीं मिलती लेकिन इन प्रदेशों में जो आम देखी जा सकती हैं. 




इनके अलावा भी एशिया में मैनाओं की कई प्रजातियाँ मिलती हैं. इन्हीं में से एक है बड़ी मैना (Large Starling) जो हमारी पूर्वी सीमा पर बमुश्किल ही कहीं देखने को मिलती है लेकिन जो मयनमार और इससे आगे थाईलैंड आदि में आम मिलती है. इसकी चोंच के ऊपर जंगली मैना से भी अधिक खड़े बाल दिखेंगे.
   
बड़ी मैना (Great Myna)(Acridotheres grandis)

जैसा कि हम पहले भी कह चुके हैं कि मैना पक्षी जहां भी जाते हैं, वहाँ ये अपने से कमज़ोर दूसरे पक्षियों को पीछे धकेलने में कामयाब हो जाते हैं. संख्या में फैलने के साथ ही ये दूसरे पक्षियों के हिस्से का भोजन भी हथिया लेते हैं और इसीलिये जिन प्रदेशों में मैनाएँ नहीं हैं, वहां इनके आगमन पर कई तरह के प्रतिबन्ध लगाने के प्रयत्न किये जाते हैं. 

लेकिन देश विदेश की मैनाओं की कहानी यहीं समाप्त नहीं होती. एशिया से निकलकर हम पश्चिम की ओर सबसे बड़े महाद्वीप अफ्रीका की ओर आते हैं तो वहाँ की रंग बिरंगी मैनाओं की विविधता हमें अचम्भे में डाल देती है. इनमें सबसे सुन्दर है पूर्वी अफ्रीका में आम पायी जाने वाली लाजवाब मैना (Superb Starling) जिसका एक चित्र तुम इस पोस्ट के शीर्षक में देख चुके हो.  
लाजवाब मैना (Superb Starling) (Lamprotornis superbus)

इसके चमकदार नीले रंगों की आभा देखते ही बनती है. केन्या, टनजानिया और दूसरे अफ्रीकी देशों में ये सुन्दर मैनाएँ हमारी सामान्य मैना जितनी ही तादाद में आम मिलती हैं और ये स्वभाव में उतनी ही लड़ाकू और हिम्मतवार होती हैं. मज़े की बात यह है कि ये अपने घोंसले बबूल के पेड़ों पर चींटों की सबसे खतरनाक प्रजातियों के बीच बनाती हैं. पेड़ के कांटे और ये चींटें इनके अण्डों और बच्चों की रक्षा करते हैं.

हिल्डेब्रैंड मैना  Hildebrandt's Starling (Lamprotornis hildebrandti)










अफ्रीका की दूसरी मैना हिल्डेब्रैंडHildebrandt's Starling भी लगभग इतनी ही खूबसूरत है. यह मुख्यतः केन्या और टनजानिया में मिलती है और कीड़े मकोड़े इसकी मुख्य खूराक हैं. अक्सर यह बड़े जानवरों के खुरों से ज़मीन से निकले कीड़ों की तलाश में उनके पीछे चलती है और कई बार यह दूसरे पक्षियों के झुण्ड में भी शामिल हो जाती है. इसे अपनी सुर्ख आँखों के सहारे आसानी से पहचाना जा सकता है. 




जेब्रा की पीठ पर सवार पीले कान वाली मैना (Wattled Starling)(Creatophora cinerea) 








अफ्रीका के जंगलों के जीवन चक्र में इन मैनाओं की अपनी ख़ास जगह है. ये बाकी चीज़ों के अलावा बड़े जानवरों की पीठ और उनके कानों से कीड़े निकालने की जिम्मेदारी भी निभाती हैं. पीले कान वाली मैना (Wattled Starling) अक्सर ज़ेब्रा की पीठ पर ही पायी जाती है. यह बड़े बड़े झुंडों में रहती है और अपनी अनुवांशिक पहचान में यह एशिया में पायी जाने वाली मैनाओं के सबसे नज़दीक है.


बैंगनी पीठ वाली मैना नर (Violet Backed Starling)(Cinnyricinclus leucogaster)
बैंगनी पीठ वाली मैना मादा (Violet Backed Starling)(Cinnyricinclus leucogaster)




अफ्रीका की बैंगनी पीठ वाली मैना (Violet Backed Starling) की दूसरी मैनाओं से सबसे बड़ी भिन्नता यह है कि इस मैना के नर और मादा देखने में बिलकुल अलग अलग होते हैं. अंग्रेज़ी में ऐसी पक्षी जातियों को हम sexually dimorphic species कहते हैं (इसका सबसे सरल उदाहरण हमारी घरेलू गौरैया है जिसमें नर और मादा अलग अलग दिखते हैं).



अफ्रीका की इस मैना में  नर की पीठ जहां चमकदार बैंगनी और नीचे  का शरीर बिलकुल सफ़ेद होता है, वहीं मादा भूरी होती है और उसके नीचे के शरीर में चकत्ते होते हैं. 












अफ्रीका  में एक और सामान्य रूप से पायी जाने वाली मैना है रुपेल की लम्बी पूंछ वाली मैना (Ruppel's Long Tailed Starling)जिसके चमकदार नीले शरीर पर सफ़ेद पुतलियों वाली आँखें इसकी प्रमुख पहचान हैं.

रुप्पेल लम्बी पूंछ मैना (Ruppel's Long Tailed Starling) (Lamprotornis purpuropterus)

                                                               
नीले आँखों वाली बड़ी मैना (Greater Blue Eared Starling)(Lampotornis chalybaeus)



इसी प्रजाति की एक और सदस्य है नीले कानों वाली बड़ी मैना (Greater Blue Eared Starling) जिसकी पुतलियाँ नारंगी आभा लिए होती हैं . यह मौसम के अनुसार अफ्रीका में ही उत्तर से दक्षिण तक प्रवास करती है और इसकी दो अलग अलग उप-प्रजातियाँ अफ्रीका में पायी जाती हैं. अन्य मैनाओं की तरह यह भी अपने कंठ से अलग अलग तरह की आवाजें निकाल सकती है और यह अक्सर झुंडों में प्रवास करती है. इन मैनाओं को कई बार दूसरे पक्षियों के साथ भी प्रवास करते देखा जा सकता है.


तो इस तरह इन दो कड़ियों में हमने तुम्हें बहुत सारी परिचित और अपरिचित मैनाओं के बारे में बताया. अपने अलग अलग रंग और रूप के बावजूद इनमें बहुत सी समानताएं भी हैं. समूह में रहने, अपने प्रदेश की रक्षा करने और वक्त आने पर सभी पक्षियों को खतरों से आगाज़ करने में इन पक्षियों का जवाब नहीं.


अगली बार कुछ और पक्षियों से पहचान!
 *** 

जितेन्द्र भाटिया 


                                                                               © all rights reserved     
  














Monday, July 2, 2018

(Part 11) प्यारी मैना!....मैं, ना, तुम! (Mynas & Starlings)


मुझे ख़ुशी  है  कि इस  क्रम  की  पहली  दस कड़ियाँ  बच्चों  और  बड़ों  द्वारा  इतनी  पसंद की  गयी! प्रस्तुत  है  इसी क्रम  की  यह  ग्यारहवीं  कड़ी , इस उम्मीद  के साथ  कि इसे भी  आप  उतने  ही  उत्साह से  पढ़ेंगे  !

जितेन्द्र भाटिया 



प्यारी मैना! 'मैं ना!!' ....तुम!!! 

हमारे घर-पड़ोस में कौए के बाद जिस पक्षी के छोटे छोटे झुण्ड या जोड़े तुम्हें आसानी से दिख जाएंगे, वह है घरेलू देसी मैना! आँगन में शोर मचाती, सुबह तड़के से ही यहाँ- वहाँ के दाने बटोरती, रात के भोजन के टुकड़े या कीड़े-मकोड़े ढूंढती, गले से कई तरह की आवाजें निकालती और फिर परिचित ध्वनि के साथ फुर्र से उड़ जाती यह मैना हमारे जीवन के कितनी करीब है. रात में डालों पर सोने से पहले सारी मैनाएँ एक साथ मिलकर जो शोर मचाती हैं उसके लिए हिंदी में एक सुन्दर शब्द है-- कलरव! शाम के समय सूरज के ढलने के साथ इन पक्षियों का कलरव तुमने कभी न कभी ज़रूर सुना होगा. गले से अलग अलग आवाजें निकालने के कारण ही हमारी कहानियों में अक्सर मैना का ज़िक्र तोते के साथ आता है, हालांकि तोते और मैना की दोस्ती तुमने शायद ही कभी देखी हो! बल्कि बगीचे में यदि बाहर से तोतों का दल आ जाये तो मैनाएँ उन्हें वहां से उड़ाने के प्रयास में लग जायेंगी! दूसरे कई पक्षियों की तरह मैना भी अपने इलाके की रखवाली बखूबी करती हैं और यदि वहां कोई दरिंदा पक्षी या जानवर आ जाये तो ये शोर मचा-मचाकर सभी को आगाह कर देंगी! 

देसी मैना  थाईलैंड में!

देसी मैना के वैज्ञानिक नाम (common myna) (Acridotheres tristis) में tristis का latin भाषा में  अर्थ होता है 'उदास' या 'दुखी' हालांकि हमारी सदा चहकती प्यारी मैना में ये दोनों ही गुण तुम्हें नहीं मिलेंगे! पता नहीं पुरातन वैज्ञानिकों ने इसके लिए यह नाम क्यों चुना! बल्कि अपने आक्रामक स्वभाव और दुनिया में तेज़ी से बढ़ती संख्या के कारण तो वैज्ञानिक अब मैना को कई स्थानों पर दूसरे पक्षियों के लिए ख़तरा  समझने लगे हैं. दुनिया के सारे पक्षी अपनी अपनी ज़मीन और आकाश पर भोजन ढूंढते हैं. वहाँ यदि किसी एक पक्षी की संख्या बढ़ती चली  जाए  तो दूसरों के लिए दाना पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा न! हिन्द महासागर के बहुत से द्वीपों में एक डेढ़ शताब्दी पहले देसी मैना नहीं पायी जाती थी. उदाहरण के लिए seychelles द्वीप!  यहाँ आज तक कौए भी नहीं हैं. लेकिन कुछ वर्ष पहले शायद गलती से मनुष्य के साथ यहाँ मैना आ गयी थी. अब यहाँ इसकी संख्या इतनी बढ़ गयी है कि इसे हर जगह देखा जा सकता है और इसके आने से दूसरी स्थानीय पक्षी प्रजातियाँ संकट में पड़ रही हैं.

पिछली कड़ियों में हमने तुम्हें कौए के पूरे परिवार से मिलाया था. तो आओ अब हम देसी मैना के निकट रिश्तेदारों से तुम्हारी पहचान करवा दें! 

शहरों के पास ग्रामीण और जंगली इलाकों में तुम्हें देसी मैनाओं के बीच या उनके आस पास उनकी जंगली बहन jungle myna (acridotheres fuscus) मिल जायेगी. यह उनसे कुछ अधिक सलेटी गाढ़े रंग की है और तुम इसकी चोंच के ऊपर उभरे बालों के गुच्छे से इसे आसानी से पहचान सकते हो. स्वभाव से शर्मीली जंगल मैना इंसानों से थोड़ा  दूर रहना पसंद करती है. 

जंगली मैनाओं का जोड़ा 

दक्षिणी भारत में मिलने वाली कुछ जंगली मैनाओं की आँख की पुतली के गिर्द का हिस्सा नीला होता है जबकि पूर्वी क्षेत्र में मिलने वाली नस्ल में यह अक्सर पीला दिखाई देता है. 

दक्षिण प्रदेश की नीली पुतलियों वाली जंगली मैना 

भारत से बाहर थाईलैंड, ताइवान आदि कई एशियाई देशों में आज भी कुछ लोग घरों में तोते की तरह मैना को पिंजरे में बंद कर रखते हैं. पक्षी प्रेमी चाहते हैं कि इन सब पक्षियों को आज़ाद कर दिया जाए. कितना अच्छा हो अगर दुनिया के सारे बच्चे और बड़े मिलकर फैसला करें कि वे अब से इन निरीह और सुन्दर पक्षियों को मारेंगे या कैद नहीं करेंगे!    

उत्तर भारत के कस्बों और कभी कभी शहरी इलाकों में तुम्हें अक्सर देसी मैना से कुछ छोटे आकर की एक और मैना दिखाई दे जाएगी. यह गंगा मैना या bank myna (acridotheres ginginianus) है. देसी मैना की तरह गंगा मैनाओं के झुण्ड भी अक्सर बाजारों या दुकानों के आसपास भोजन की तलाश में चलते फिरते दिख जायेंगे. गंगा मैना का शरीर राख सा सलेटी दिखता है और चोंच तथा आँख के पीछे के लाल रंग से तुम इसे झट पहचान लोगे.   

तार पर बैठी गंगा मैना 

गंगा मैनाएँ अक्सर नदी के किनारों में छेदों और सूराखों में अपने घोंसले बनाती हैं और इसी आदत के कारण इन्हें अपना यह नाम मिला है.

गंगा मैना का बच्चा

मैनाओं के लिए अंग्रेज़ी में एक और नाम है starling! एशिया में कुछ जातियों को मैना कहा जाता है और कुछ को 'स्टर्लिंग' जबकि यूरोप और अमेरिका में इन्हें ज़्यादातर 'स्टर्लिंग' नाम से ही पुकारा जाता है. लेकिन इन दोनों प्रजातियाँ ही वैज्ञानिक समूह 'sturnidae' के अंतर्गत आती हैं और दोनों में कोई अंतर नहीं है. बल्कि हमारे देश में तो कुछ प्रजातियों का स्थानीय नाम मैना है और अंग्रेजी नाम 'starling', इसलिए इन दोनों को तुम एक ही समझो! 

हमारे जंगलों और उसके आसपास के देहातों में एक और खूबसूरत मैना आम मिलती है जिसका नाम है ब्राह्मणी मैना brahminy starling (Sturnia pagodarum). इसकी काली टोपी के कारण इसे कालासिर मैना भी कहा जाता है. इसका एक और नाम है पुहैया मैना.


कालसिर मैना 

इसके काले सिर को देखकर तुम्हें ऐसा लगेगा जैसे इसने अपने बालों में कंघी फिराई हुई है. इसकी पहचान है आधी पीली, आधी सलेटी-नीली चोंच और इसकी नीली पुतलियों से घिरी तेज़ दिखने वाली आँखें. तुम ज़रूर पूछोगे कि इसे ब्राह्मणी मैना क्यों कहते हैं? इसका कोई ठीक जवाब देना मुश्किल है लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि इसकी छाती का भूरा रंग पंडितों द्वारा चेहरे पर लगाई जानेवाली चन्दन की भभूत से मिलता जुलता है. इस जातिवादी नाम पर कुछ लोगों को ऐतराज़ भी है. सो हम अगर इसे कालासिर मैना ही कहें तो ठीक होगा. 

हमारे प्रदेश के मैदानों में एक और काली सफ़ेद मैना तुम्हें अक्सर दिख जाएगी. यह है अबलक मैना asian pied starling (Gracupica contra) जो घरों के आसपास तो नहीं दिखती लेकिन खुले मैदानों और बगीचों में यह पूरे दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में आम दिखती है.

अबलक मैना 

इसकी पहचान है इसका काला सफ़ेद शरीर और चोंच एवं आँखों के गिर्द पीला-नारंगी रंग. यह कई बार खेतों में दूसरी मैनाओं और पक्षियों के साथ जोड़ों या झुंडों में दिखाई देती है.

हमने अब तक जिन मैनाओं के बारे में तुम्हें बताया, वे सारा साल देश में ही रहती हैं. लेकिन दो मैनाएँ ऐसी हैं जो तुम्हें सिर्फ सितम्बर और मार्च के बीच ही भारत में दिखाई देंगी क्योंकि वे सिर्फ सर्दियां बिताने के लिए विदेशों से हमारे यहाँ आती हैं. ये हैं तिल्यर और गुलाबी मैनाएँ!

तिल्यर मैना common starling (Sturnus vulgaris)

काले शरीर पर सफ़ेद चकत्तों और लम्बी चोंच वाली तिल्यर मैना (common starling) योरोप में  आम पायी जाती है. वहाँ जब सर्दियां शुरू होती हैं तो यह भारत जैसे अपेक्षाकृत गर्म देशों का रुख लेती है. फिर यहाँ गर्मियों का मौसम शुरू होते ही यह वापस अपने ठन्डे देशों में लौट जाती है. पक्षियों की इन लम्बी यात्राओं के बारे में हम तुम्हें पहले बता चुके हैं. 

गुलाबी मैनाओं का जोड़ा 

काले चमकदार सिर एवं डैनों, हल्के गुलाबी शरीर और हलके नारंगी पैरों और चोंच वाली गुलाबी मैना भी योरोप की निवासी है. वहां से सर्दियों में हमारे देश आने वाली गुलाबी मैनाओं rosy starling (Sturnus roseus) के बड़े-बड़े झुण्ड सर्दी के मौसम में तुम्हें अक्सर पेड़ों और बिजली की तारों पर बैठे दिख जायेंगे. फिर शाम के समय जब ये एक साथ उड़ती हैं तो ये जैसे सारे आकाश को ढक लेती हैं. इनकी इस सामूहिक उड़ान में कभी कभी सुन्दर लय सी मिलेगी. 

तो यह हुई आसपास दिखने वाली परिचित मैनाओं की कथा! लेकिन मैनाओं की कहानी यहीं समाप्त नहीं होती. अगली बार तुम्हें जंगलों में रहने और देश-विदेश में पायी जाने वाली दूसरी मैनाओं के बारे में बताएँगे!
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जितेन्द्र भाटिया 

                                                                              © all rights reserved     

Friday, March 17, 2017

(Part 10) कुछ और रिश्तेदार कौओं के! (some more members of the crow family)

बच्चों की एक हिंदी विज्ञान पत्रिका के लिए मैं पक्षियों पर एक श्रृंखला कर रहा हूँ. मित्रों और बहुत से बच्चों का आग्रह था कि इसे 'ब्लॉग' का रूप भी दिया जाए. इसी की पूर्ति में प्रस्तुत है पक्षियों की अनोखी दुनिया की यह दसवीं कड़ी जो शायद बच्चों के अलावा बड़ों को भी पसंद आये!
जितेन्द्र भाटिया

कुछ और रिश्तेदार कौए  के ....... 

अब तक तुम कौए परिवार के जिन सदस्यों से मिले उनमें से अधिकाँश काले थे! आओ अब इस परिवार के कुछ अनूठे रंग बिरंगे सम्बन्धियों से मिलते चलें. अलग अलग रंगों के होने के बावजूद इन सब में तुम्हें कौओं के सारे गुण मिल जाएंगे. कौओं की तरह भले ही ये 'कांव-कांव' न करते हों, लेकिन फिर भी इनका स्वर रूखा और कर्कश होता है. और इनमें से कुछ तो अपने गले से कई तरह की अलग अलग आवाजें भी निकाल सकते है. इनमें से अधिकाँश जंगलों के निवासी हैं, लेकिन कुछ को भोजन की तलाश में बस्तियों के नज़दीक भी देखा जा सकता है. ये परिवार हैं तरुपिक (treepies), लंबपूंछिया (magpies) और बनसर्रे (jays). 

तरुपिकों के परिवार का सबसे परिचित सदस्य है लाल तरुपिक (Rufous Treepie) जिसे तुम अक्सर आस पास के बगीचों और वनों में देख सकते हो.  
लाल तरुपिक (Rufous Treepie) (Dendrocitta vagabunda) 
इसकी ख़ास पहचान है इसका दालचीनी तथा सलेटी रंग, लम्बी पूँछ और गले से निकलने वाली अलग अलग आवाजें. कौओं की तरह तरुपिक भी काफी दबंग होता है  और भोजन के लालच में यह अक्सर घरों के आसपास भी आ जाता है, हालाँकि इसका अधिकाँश समय पेड़ों पर ही गुज़रता है. अगर तुम रणथम्भोर या किसी दूसरे अभयारण्य की सैर पर जाओ तो हो सकता है लाल तरुपिक भोजन की तलाश में तुम्हारी जीप तक आ जाए!  
सफ़ारी जीप के भीतर लाल तरुपिक!


सफ़ेद छाती तरुपिक 
पूरी दुनिया में तरुपिक की कुल ग्यारह प्रजातियाँ हैं और इनमें से लगभग आधी हमारे भारतीय जंगलों में पायी जाती हैं. दक्षिणी भारत के जंगलों में लाल तरुपिक से काफी मिलता जुलता सफ़ेद छाती तरुपिक (White Bellied Treepie) (Dendrocitta leucogastra) मिलता है जो चेहरे और पंखों को छोड़कर सफ़ेद होता है. और इसी तरुपिक का एक और भाई पहाड़ों में दिखाई देता है--सलेटी तरुपिक (Grey Treepie) (Dendrocitta formosae) जो सफ़ेद की जगह सलेटी होता है. लेकिन इन अलग अलग रंगों के अलावा  ये सारे तरुपिक अपनी लम्बी पूंछ से लेकर काले चेहरे तक लगभग एक जैसे ही होते हैं! 


लद्दाख में भेड़ की सवारी करती काली चोंच लंबपूंछिया
योरोप के जंगलों और घरों के आसपास कौए से बड़े  आकाrर की एक और काली-सफ़ेद चिड़िया अक्सर कचरे के ढेर के आसपास भोजन तलाशती मिल जायेगी. यह काली चोंच वाली लम्बपूंछिया (Black Billed Magpie) (Pica pica) है जो हमारे पहाड़ों में भी नौ हज़ार फीट से अधिक की ऊंचाई पर अक्सर दिख जायेगी. इसकी आवाज़ भी कौए जैसी ही कर्कश होती है. इसके पंखों पर तुम्हें नीला रंग दिखेगा और देखने में यह कौए से कहीं अधिक सुन्दर होती है. लेकिन इससे भी अधिक सुंदर होती है---
काली चोंच लंबपूंछिया 


कम ऊँचाई वाले पहाड़ों में रहने वाली लाल और पीली चोंच वाली नीली लंबपूंछिया (Red and Yellow Billed Blue Magpies)(Uricissa erythrohyncha) और flavirostris)जो सुबह और शाम के समय अक्सर पहाड़ी आंगनों में भोजन तलाशती और शोर मचाती नज़र आती हैं. 

पीली और लाल चोंच वाली नीली लंबपूंछिया लगभग एक जैसी होती हैं लेकिन इन्हें अलग अलग पक्षी माना गया है.
लाल चोंच वाली नीली लंबपूंछिया का जोड़ा  


लेकिन निस्संदेह नीली लंबपूंछियों के परिवार की सबसे शानदार चिड़िया है श्रीलंका में मिलने वाली श्रीलंका नीली लंबपूंछिया जिसे इस देश के राष्ट्रीय पक्षी होने का गौरव भी हासिल है.  यह श्रीलंका के बाहर कहीं नहीं मिलती.
श्रीलंका नीली लंबपूंछिया (Srilanka Blue Magpie)(Urocissa ornata)
यदि कौए परिवार के इन रंगबिरंगे पक्षियों से तुम्हारा दिल न भरा हो तो तुम्हें मिलाते हैं सुदूर उत्तर पूर्व में पायी जाने वाली हरी लंबपूंछिया (Common Green Magpie)(Cissa chinensis chinensis) जिसका चटक रंग और लिपस्टिक को मात देती लाल चोंच देखते ही बनती है.
हरी लंबपूंछिया 
एशिया के कई देशों में लंबपूंछिया की कई और प्रजातियाँ भी मिलती हैं. इनमें से अधिकाँश काली या काले सफ़ेद रंग की कौए के स्वभाव से मिलती जुलती हैं. 

इनके साथ ही पहाड़ों पर फैले वनों में कौए की ही जाति  के दो बनसर्रे (Jays) भी मिलते हैं. ये स्वभाव में लंबपूंछियों से काफी मिलते जुलते हैं लेकिन इनकी पूंछ उतनी लम्बी नहीं होती. 
यूरेशियन बन्सर्रा (Eurasian Jay)(Garrulus glandarius)
 काला सिर बन्सर्रा (Black Headed Ray)(Garrulus lanceolatus) भी हिमालय की उन्हीं तराइयों में आम देखा जा सकता है, बांज के वनों में शाहबलूत या बांज के फल इसका प्रिय भोजन है. 
काला सिर बन्सर्रा (Black Headed Jay)
हिमालय की तराइयों में तुम्हें ये दोनों बनसर्रे आसानी से मिल जाएंगे.

उम्मीद है कि इन सारी तस्वीरों की कहानी जान चुकने के बाद तुम अब यह तो नहीं कहोगे कि सब कौए काले होते हैं. कौए के इस बड़े परिवार में तुम्हें हर रंग के सदस्य मिल जाएंगे. वैज्ञानिकों का मानना है कि हज़ारों लाखों साल पहले कौओं के इस परिवार का सूत्रपात किसी एक पक्षी से हुआ होगा और समय के साथ इसके इन सारे वंशजों का विकास धीरे धीरे हुआ होगा. तो पक्षी संसार के सबसे बुद्धिमान परिवार कौए की कहानी हम यहीं समाप्त करते हैं!                                                                                      ***


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Sunday, February 19, 2017

(Part 9) पूरी बिरादरी कौओं की ...(The Family of Crows)

लद्दाख में दुनिया के सबसे बड़े उत्तरी काले कौओं (Northern Ravens) (Corvus corax)का एक झुण्ड!

बच्चों की एक हिंदी विज्ञान पत्रिका के लिए मैं पक्षियों पर एक श्रृंखला कर रहा हूँ. मित्रों और बहुत से बच्चों का आग्रह था कि इसे 'ब्लॉग' का रूप भी दिया जाए. इसी की पूर्ति में प्रस्तुत है पक्षियों की अनोखी दुनिया की यह नवीं कड़ी जो शायद बच्चों के अलावा बड़ों को भी पसंद आये!

जितेन्द्र भाटिया

पूरी बिरादरी कौओं की ....... 

क्या तुम कौओं की 'कांव-कांव' के बगैर जीवन के बारे में सोच भी सकते हो? शायद नहीं !  वे हर जगह हैं. गाँव और शहर में, जंगल या पहाड़ में और जहाँ इंसान नहीं हैं, वहां भी तुम्हें कौओं के झुण्ड मिल जाएंगे. हमारे साथ रहते रहते वे हमारे स्वभाव को भी अच्छी तरह जान गए हैं. कितनी फुर्ती से वे हमारे हाथ की रोटी छीन या चुरा ले जाते हैं. खुले में खाने का सामान देखते ही कैसे वे अक्सर अपने साथियों को बुला लाते हैं. और आकाश में अपने से बड़ा कोई शिकारी पक्षी या बाज़ दिखते ही वे कैसे शोर मचा और भगा भगाकर उसे उड़ा देते हैं! क्या तुम जानते हो कि पक्षियों में कौआ सबसे अधिक बुद्धिमान है? तुमने पानी के बर्तन में कंकड़ डालकर जल के ताल को उठाकर पानी पीने वाले प्यासे कौए की कथा तो ज़रूर सुनी होगी. सूखी रोटी को नर्म बनाने के लिए कौए कई बार उसे पानी में डुबोकर खाते देखे गए हैं. वैज्ञानिकों ने और भी कई परीक्षणों से कौए की समझदारी परखी है और उन्हें पक्षियों में सबसे बुद्धिमान पाया है.
भारतीय जंगली कौआ (Eastern Jungle Crow)(Corvus culminatus)
तो आओ इस बार हम तुम्हें इस चतुर पक्षी के पूरे परिवार और इसके अलग अलग सदस्यों से मिलवायें. वैज्ञानिक शब्दावली में corvidae नाम से जाने वाले कौए के परिवार में एक सौ बीस से अधिक प्रजातियाँ हैं और हमारे आसपास दिखने वाला घरेलू कौआ उनमें से सिर्फ एक है. लेकिन इस परिवार के सभी सदस्यों में तुम्हें कई समानताएं मिलेंगी. लम्बी सीधी चोंच, लम्बे पैर और चोंच के पीछे के हिस्से में रोंयेदार गुच्छा. कौए सभी अच्छे उड़ाकू होते हैं और ये अक्सर कांव कांव के अलावा कई दूसरी आवाजें भी निकालते हैं. ये अक्सर झुंडों में रहते हैं और स्वभाव से ये जिज्ञासु और हर स्थिति में जी सकने वाले होते हैं.   

क्या सभी कौए काले होते हैं? नहीं. हम पहले ही बता चुके हैं कि बहुत से कौए काले-सफ़ेद भी होते हैं. और इस प्रजाति के कई दूसरे सदस्य तो अन्य रंगों के और रंग बिरंगे भी होते हैं. 

कौए पूरी दुनिया में फैले हुए हैं लेकिन seychelles जैसे कुछ द्वीप समूह हैं जहाँ कौए नहीं हैं और इन द्वीपों को अब जानबूझकर कौओं से दूर रक्खा जाता है क्योंकि इनके यहाँ आने से अन्य निवासी पक्षियों का संतुलन बिगड़ सकता है.
रेगिस्तानोंं का बड़ा कौआ (Punjab Raven)(Corax subcorax )




घरेलू कौए के अलावा बड़ी चोंच वाले,काले सफ़ेद और पहाड़ी कौओं (house crow, large billed crow, hooded crow, northern and punjab ravens) के बारे में हम तुम्हें पहले बता चुके हैं (देखिए इसी लेखमाला का भाग 2).


आओ अब इस परिवार के कुछ और  सदस्यों  से  तुम्हें मिलवाते हैं! 

कश्मीर और लद्दाख की सुदूर पहाड़ियों में एक छोटे आकार का कौआ काविन (eurasian jackdaw)(Corvus monedula) मिलता है जिसकी आँखों की पुतली सफ़ेद होती है और जो कौए के कर्कश स्वर की जगह पतली आवाज़ में मिमियाता सा प्रतीत होता है. नीचे दिया काविन का चित्र स्वीडन का है. 
काविन (Eurasian Jackdaw)
मार्जक (carrion crow)
इसी प्रदेश में पहाड़ी कौए से कुछ छोटा 'मार्जक' (carrion crow) (Corvus carone)  भी मिलता है जिसकी चोंच कुछ छोटी होती है. ये दोनों कौए योरोप के ठन्डे प्रदेशों में आम पाए जाते हैं. ठंडी सर्दियों में यहाँ योरोप से एक तीसरा कौआ 'कपटी' (rook)(Corvus frugilegus) भी कभी कभी आता है जिसकी चोंच का पिछला हिस्सा कुछ सफ़ेद होता है.  लेकिन ये सब ठन्डे प्रदेश के कौए हमारे मैदानों में कम ही दिखते हैं. काविन, मार्जक और कपटी, ये तीनों झुंडों में रहते हैं. चमकदार चीज़ों को ये कई बार चुराकर अपने घोंसलों में ले आते हैं.जहाँ लोगों को कई बार अपनी खोई हुई अंगूठियाँ  तक मिली हैं! ये बेहद समझदार होते हैं और दूसरे पक्षियों के अण्डों को तोड़कर खाने के लिए ये अक्सर पत्थरों और लकड़ी के टुकड़ों का प्रयोग करते देखे गए हैं.

कपटी कौआ (Rook)

हवा में उड़ता पील चोंच कर्णभेदी (Alpine Chough)


पहाड़ों की घाटियों में कई बार तुम्हें सीटियों जैसी 'स्विइऊ-स्विइऊ' की तीखी आवाजें  दूर तक सुनाई देंगी. यह कौओं की प्रजाति का एक और सदस्य कर्णभेदी (chough) है! इन घाटियों में एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी तक इसकी सीटियाँ और कलाबाज़ उड़ानें देखते ही बनती हैं. इसकी दो प्रजातियाँ हिमालय और दूसरे पहाड़ों में मिलती हैं-- लाल चोंच कर्णभेदी (red billed chough)(Pyrrhocorax pyrrhocorax) और पील चोंच कर्णभेदी (yellow billed or alpine chough)( Pyrrhocorax graculus).
पील चोंच कर्णभेदी (Alpine Chough)
 जैसा कि इनके नामों से ज़ाहिर है, इनमें से एक की चोंच लाल और दूसरे की पीली होती है. लेकिन पैर दोनों के लाल होते हैं. ये पक्षी जोड़ों में रहते हैं और पहाड़ों की सीधी चट्टानों पर अपना घोंसला बनाते हैं. 
चट्टानों के बीच लाल चोंच कर्णभेदी का घोंसला 
हिमालय की ऊंची पहाड़ियों में कौओं की प्रजाति का एक और अनोखा पक्षी मिलता है--चितली अखरोटफोड़ा (spotted nutcracker) जिसका मुख्य भोजन है देवदार वृक्ष के बीज. इसके अलावा यह कीड़े भी खाता है. इसकी नुकीली चोंच देवदार की तहों से बीज निकालने और उन्हें तोड़ने के काम आती है. 
चितला अखरोटफोड़ा (spotted nutcracker)
अखरोटफोड़ा सर्दियों के लिए एक बार में तीस हज़ार या इससे भी अधिक देवदार के बीज बचाकर रखता है. अपने इस काम से यह पर्यावरण की रक्षा भी करता है. कहा जाता है कि जंगलों की आग और मनुष्य द्वारा नष्ट किये देवदार के हज़ारों पेड़ इस पक्षी द्वारा इकट्ठे किये बीजों से दुबारा उग आते हैं! 
कौओं की बिरादरी यहीं समाप्त नहीं होती! अगली बार तुम्हारा परिचय इस परिवार के कुछ अन्य रंगीन सदस्यों से होगा! 
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